Monday, July 21, 2025
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22 जून को लखनऊ में बिजली कर्मचारियों की महापंचायत, होगा बड़ा फैसला

उत्तर प्रदेश में विद्युत कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में बड़ा आंदोलन छेड़ दिया है। 22 जून को लखनऊ में महापंचायत होगी, जबकि सोमवार को वाराणसी में प्रबंध निदेशक कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया जाएगा। पढ़िए पूरी खबर।

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

गोरखपुर/वाराणसी। उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के अभियंताओं और कर्मचारियों ने उपभोक्ताओं और किसानों को भी इस आंदोलन से जोड़ना शुरू कर दिया है। इसके तहत 22 जून को लखनऊ में एक महापंचायत का आयोजन किया जाएगा, जिसमें निजीकरण के विरुद्ध बड़ा फैसला लिया जाएगा।

वाराणसी में सोमवार को बड़ा प्रदर्शन

संघर्ष समिति के अनुसार, सोमवार को वाराणसी स्थित पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कार्यालय के सामने जोरदार प्रदर्शन किया जाएगा। यह प्रदर्शन उस उत्पीड़न के विरोध में होगा, जिसके तहत छह अभियंताओं के स्थानांतरण किए गए हैं। समिति ने प्रबंधन को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि यदि ये आदेश वापस नहीं लिए गए, तो बड़ा विरोध प्रदर्शन अनिवार्य होगा।

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🧾 निजीकरण के पीछे साजिश का आरोप

संघर्ष समिति के संयोजक पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि यह केवल कर्मचारियों का मुद्दा नहीं है, बल्कि इससे किसान, गरीब, मजदूर और आम उपभोक्ता सभी प्रभावित होंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि

“कुछ निजी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए बिजली विभाग को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है। यह किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

📜 लखनऊ महापंचायत में होगा श्वेत पत्र जारी

महापंचायत के दौरान, समिति एक श्वेत पत्र जारी कर निजीकरण की वास्तविकता और प्रबंधन द्वारा दिए जा रहे झूठे आंकड़ों का पर्दाफाश करेगी। साथ ही, उड़ीसा, दिल्ली, चंडीगढ़, आगरा और ग्रेटर नोएडा जैसे क्षेत्रों में निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को हुई समस्याओं को प्रस्तुत किया जाएगा।

इसके अलावा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रस्ताव भेजकर उन दुश्वारियों से अवगत कराया जाएगा, जिनका सामना निजीकरण के बाद वहां के उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को करना पड़ा है।

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🗣️ जनता को आंदोलन से जोड़ने की रणनीति

संघर्ष समिति अब अपने आंदोलन को जन आंदोलन का रूप देने की तैयारी में है। इसके तहत गांव-गांव जाकर किसानों और उपभोक्ताओं को निजीकरण के संभावित नुकसान के बारे में बताया जाएगा। इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य यह है कि सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि हर नागरिक का दायित्व है।

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