राजस्थान के पाली जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में बड़ा घोटाला सामने आया है। हिंदू बहुल गांवों में मुस्लिम नामों से फर्जी खाते खोलकर करोड़ों की सरकारी राशि हड़पी गई। जांच में चौंकाने वाले खुलासे।
भैरव मारवाड़ी की रिपोर्ट
पाली(राजस्थान)। राजस्थान के पाली जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने सरकारी योजनाओं की निगरानी और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह फर्जीवाड़ा उन्हीं गांवों में हुआ है जहां मुस्लिम आबादी का नामोनिशान तक नहीं है, फिर भी हजारों मुस्लिम नामों से खाते खोलकर सरकारी राशि प्राप्त की गई।
घोटाले की परतें धीरे-धीरे खुलीं
जैसे-जैसे जांच की परतें खुलती गईं, वैसे-वैसे घोटाले की गंभीरता सामने आती गई। पाली जिले के देसूरी गांव में करीब 20 हजार, रानी गांव में 9,004 और मारवाड़ जंक्शन में 62 फर्जी बैंक खातों का खुलासा हुआ। इन सभी खातों से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की किस्तें जारी की गई थीं।
पूरी तरह हिंदू गांव, पर मुस्लिम नामों से खाते
इस घोटाले की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि जिन गांवों में ये खाते खोले गए, वहां पर एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता। बावजूद इसके, हजारों फर्जी खातों में अधिकांश नाम मुस्लिम समुदाय के पाए गए। इस खुलासे ने प्रशासनिक तंत्र की आंखें खोल दी हैं।
किसके नाम पर खुले थे ये फर्जी खाते?
जांच में यह सामने आया कि जिन नामों से खाते खोले गए हैं, वे व्यक्ति उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के निवासी हैं। हैरत की बात यह है कि इन सभी खातों का पंजीकरण एक ही समय में किया गया और उन्हें सरकारी पोर्टल पर तत्काल स्वीकृति भी मिल गई। यह दिखाता है कि यह पूरा खेल पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया।
90% फर्जी लाभार्थी मुस्लिम नाम वाले
जांच अधिकारियों ने बताया कि इन खातों में से लगभग 90 प्रतिशत नाम मुस्लिम समुदाय के हैं। यह एक चिंताजनक संकेत है, जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह घोटाला किसी संगठित गिरोह द्वारा अंजाम दिया गया हो सकता है।
2020 में हुआ था घोटाला, पर अब हुआ खुलासा
गौरतलब है कि यह घोटाला वर्ष 2020 में ही घटित हुआ था, लेकिन अधिकारियों ने उस समय मामले को दबा दिया। हालांकि, उन्होंने कुछ फर्जी खातों की पहचान कर पैसे ट्रांसफर पर रोक लगा दी थी, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी। अब जाकर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, जिससे मामले में कानूनी कार्रवाई की शुरुआत हो सकी है।
प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत?
इस घोटाले ने प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिए हैं। एक तरफ जहां पंजीकरण और स्वीकृति की प्रक्रिया डिजिटल प्रणाली पर आधारित है, वहीं दूसरी तरफ एक ही समय में इतने बड़े पैमाने पर फर्जी खाते कैसे स्वीकृत हो गए, यह जांच का विषय है। क्या यह अधिकारियों की लापरवाही थी या फिर किसी अंदरूनी मिलीभगत का हिस्सा?
यह मामला न केवल सरकारी योजना की सुरक्षा प्रणाली की कमजोरी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस प्रकार योजनाओं का लाभ उठाने के लिए जाति और धर्म की पहचान को हथियार बनाया जा सकता है। यह जरूरी है कि ऐसे मामलों में कठोर जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, ताकि योजनाओं में पारदर्शिता बनी रहे और असली किसानों को उनका हक मिल सके।