बलिया के श्रीनाथ मठ विवाद में महंत कौशलेंद्र गिरी की तहरीर पर नपा अध्यक्ष समेत 13 नामजद और 100 अज्ञात पर FIR दर्ज, शहर बंद, भक्तों का प्रदर्शन और प्रशासन की कड़ी कार्रवाई।
जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
बलिया। श्रीनाथ मठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर कौशलेंद्र गिरी से जुड़ा विवाद मंगलवार को गंभीर रूप ले चुका है। इस विवाद ने तब तूल पकड़ा, जब महंत की तहरीर पर नगर पालिका अध्यक्ष समेत 13 नामजद और लगभग 100 अज्ञात लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
मामला क्या है?
महंत कौशलेंद्र गिरी ने पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि श्रीनाथ पीठ की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए कुछ लोग लगातार दुष्प्रचार में लिप्त हैं। इसके परिणामस्वरूप, पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए नगर पालिका अध्यक्ष समेत छह लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है।
प्रशासन की त्वरित सक्रियता
जैसे ही यह सूचना फैली, श्रीनाथ मठ परिसर में भक्तों की भारी भीड़ जमा हो गई। इसके साथ ही, आक्रोशित भक्तों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया और आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। हालात की गंभीरता को देखते हुए एएसपी उत्तरी अनिल कुमार झा भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। वहीं, एडीएम अनिल कुमार, एसडीएम संजय कुशवाहा और क्षेत्राधिकारी आलोक गुप्ता ने महामंडलेश्वर से वार्ता कर स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, नगर पालिका अध्यक्ष की गिरफ्तारी के विरोध में शहर का बाजार पूरी तरह बंद रहा। न केवल स्थानीय व्यापारी बल्कि नपा के सफाईकर्मी और बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता भी विरोध में सामने आए। वे थाना गेट के बाहर धरने पर बैठ गए और नगर पालिका अध्यक्ष की तत्काल रिहाई की मांग करने लगे।
पुलिस की जांच और बयान
एसपी ओमवीर सिंह ने स्पष्ट किया कि, “महंत कौशलेंद्र गिरी की शिकायत पर नामजद और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए पीठ के खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार की जांच एएसपी उत्तरी अनिल कुमार झा को सौंपी गई है।”
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस पूरे मामले की गहराई से जांच कर रही है और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। प्रशासन पूरी तरह से सतर्क है और स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है।
यह मामला सिर्फ कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि आस्था, सामाजिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक हस्तक्षेप का भी बनता जा रहा है। जहां एक ओर धार्मिक आस्थाएं आहत होने का दावा कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक संस्थाओं और उनके प्रतिनिधियों के विरुद्ध कार्रवाई से असंतोष भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।