Monday, July 21, 2025
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“जब धरती की सीमाएँ छोटी लगने लगें, तो अंतरिक्ष बुलाता है…और जब राष्ट्र के कंधों पर तिरंगा हो, तो हर कदम इतिहास रचता है”

अनिल अनूप

करीब चार दशक पहले, जब भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष से “सारे जहां से अच्छा” की गूंज पूरे देश को सुनाई थी, तब से आज तक भारत उस गूंज की अगली ध्वनि की प्रतीक्षा कर रहा था। और अब, 41 वर्षों के बाद, वह प्रतीक्षित क्षण एक बार फिर हमारे गर्व का आकाश बन गया है।

भारतीय वायुसेना के जांबाज़ ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, अब भारत के दूसरे नागरिक हैं, जो पृथ्वी की सीमाओं को पार कर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) तक पहुंचे हैं। यह केवल एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं, बल्कि भारत के ‘मानव अंतरिक्ष युग’ की वह शुरुआत है, जिसकी कल्पना हमने दशकों से की थी।

🌌 जब आकाश छोटा पड़ गया…

भारत का यह स्वर्णिम क्षण केवल अंतरिक्ष तक पहुंचने का नहीं, बल्कि अपनी वैज्ञानिक शक्ति, आत्मबल और वैश्विक सहभागिता का प्रमाण है। शुभांशु की यह यात्रा न केवल तकनीकी दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

जब उन्होंने पहला संदेश अंतरिक्ष से भेजा – “क्या अद्भुत सफर है! हम 7.5 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं… मेरे कंधे पर तिरंगा मुझे बताता है कि मैं आप सभी के साथ हूं…” – तो यह केवल एक अंतरिक्ष यात्री की आवाज नहीं थी, यह 146 करोड़ भारतीयों की सामूहिक चेतना की आवाज थी, जो शून्य में अनंत की खोज कर रही थी।

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🚀 अंतरिक्ष का यह चरण क्यों है खास?

यह यात्रा किसी साधारण अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा नहीं, बल्कि ‘एक्सिओम-4’ नामक निजी कंपनी द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय मिशन है, जिसमें भारत के साथ अमेरिका, हंगरी और पोलैंड के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि यह मिशन केवल आईएसएस की यात्रा नहीं, बल्कि वहां वैज्ञानिक प्रयोगों की एक प्रयोगशाला भी है। कुल 60 प्रयोगों में से 7 सीधे भारत के लिए होंगे—और ये प्रयोग भारत के वैज्ञानिक भविष्य की बुनियाद बन सकते हैं।

उदाहरण के लिए:

  • अंतरिक्ष में मांसपेशियों की हानि का अध्ययन,
  • मूंग और मेथी जैसे भारतीय सुपरफूड्स की माइक्रोग्रैविटी में खेती,
  • मानव कोशिकाओं की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का निरीक्षण,
  • और मधुमेह के उपचार की संभावनाओं पर नई दृष्टि…

ये शोध न केवल भारत, बल्कि पूरी मानवता को नई राह दिखा सकते हैं।

🌍 राष्‍ट्रों की सीमाएं पार करता भारत

शुभांशु का यह अभियान एक वैश्विक सामूहिक प्रयास का हिस्सा है, लेकिन इसकी आत्मा भारतीय है। उन्होंने रूस, इसरो और नासा से प्रशिक्षण पाया, और अब वही भारतीय वायुसेना का अनुभवी पायलट पूरे विश्व को दिखा रहा है कि भारत विज्ञान, साहस और समर्पण की कसौटी पर भी सबसे आगे खड़ा हो सकता है।

भारत सरकार की कैबिनेट ने पहली बार किसी ऐसे नागरिक अंतरिक्ष अभियान का स्वागत तालियों और बधाइयों के साथ किया। यह निर्णय महज़ औपचारिकता नहीं, बल्कि इसरो और भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के प्रति एक स्पष्ट समर्थन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु को “140 करोड़ भारतीयों की उम्मीद” कहकर न केवल उन्हें सम्मानित किया, बल्कि यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारत दर्शक नहीं, निर्णायक है।

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🌑 ‘गगनयान’ की ओर पहला कदम

शुभांशु की यह उड़ान, भारत के आगामी गगनयान मिशन का प्रस्थान बिंदु है। 2027 में प्रस्तावित यह भारतीय मानव मिशन, पूर्णतः स्वदेशी तकनीक और प्रतिभा पर आधारित होगा। गगनयान भारत के आत्मनिर्भर वैज्ञानिक संकल्प का वह प्रतिरूप होगा, जो अंतरिक्ष की अंधेरी खामोशी में भी भारत की आवाज गूंजाएगा।

इसके साथ-साथ भारत 2035 तक अपने अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और 2040 तक मानव को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। यह सब केवल विज्ञान नहीं, सपनों का वैज्ञानिक अनुवाद है।

🧠 विज्ञान, भाव और भविष्य का संगम

अंतरिक्ष यात्राएं केवल टेक्नोलॉजिकल रोमांच नहीं होतीं; वे एक गहरी दार्शनिक और भावनात्मक यात्रा भी होती हैं। जब एक मनुष्य पृथ्वी से अलग होता है, तो वह केवल दूरी नहीं बनाता, वह अपने भीतर से भी एक नया संवाद शुरू करता है। मांसपेशियों का क्षरण हो या आंखों की रोशनी पर प्रभाव, अंतरिक्ष शरीर और मन दोनों को बदलता है। शुभांशु जैसे यात्रियों का अनुभव, भारत के लिए आने वाली पीढ़ियों की वैज्ञानिक सोच को नई ऊंचाई देगा।

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आईएसएस पर योग और व्यायाम, माइक्रो ग्रैविटी में इंसुलिन के प्रभाव का परीक्षण—इन सभी का अंतिम उद्देश्य यही है: मानवता को आगे ले जाना, बीमारी को हराना और जीवन को समझना।

🇮🇳 तिरंगे का यह रंग अब अंतरिक्ष में भी चमक रहा है…

“विंग्स ऑफ फायर” के लेखक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने एक बार कहा था—“Dream is not that which you see while sleeping, it is something that does not let you sleep.” शुभांशु की यात्रा उसी जागृत स्वप्न की उड़ान है।

आज जब वह आईएसएस में तिरंगे के साथ पृथ्वी को निहार रहे हैं, हम यहां भारत में उन्हें नमन कर रहे हैं—क्योंकि उन्होंने यह साबित कर दिया कि हम केवल भूमि के योद्धा नहीं, आकाश के भी अधिकारी हैं।

आकाश की सीमा नहीं, आस्था है

शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन उससे कहीं अधिक वह नयी पीढ़ियों की प्रेरणा है। यह मिशन केवल वैज्ञानिक नहीं, सांस्कृतिक विजय का प्रतीक भी है। यह भारत की उस आकांक्षा की उड़ान है, जिसमें कोई दीवार नहीं, कोई रुकावट नहीं—सिर्फ अंतरिक्ष का विस्तार है।

उनकी यात्रा सफल हो, उनके प्रयोग मानवता के लिए वरदान साबित हों और भारत इसी तरह विज्ञान और साहस की दिशा में अग्रसर होता रहे—यही कामना है।

जय विज्ञान, जय भारत

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