प्रयागराज में आबकारी विभाग की महिला सिपाही के पति ने विभागीय अफसर पर पत्नी को वश में करने और परिवार तोड़ने का आरोप लगाते हुए सीएम योगी को पत्र लिखा। डीएम ने मामले की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए हैं।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले से एक बेहद चौंकाने वाला और संवेदनशील मामला सामने आया है। जिले के आबकारी विभाग में तैनात महिला सिपाही के पति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं।
सीधे आरोप: अफसर ने पद और पैसे का दिया लालच
महिला सिपाही के पति ने आरोप लगाया है कि विभाग के उच्च पद पर बैठे अधिकारी ने उसकी पत्नी को पद और पैसे का लालच देकर अपने वश में कर लिया है। पति का दावा है कि अब दोनों के बीच अनैतिक संबंध हैं, जिससे उसका परिवार पूरी तरह से टूटने की कगार पर आ गया है।
डीएम हुए सक्रिय, मजिस्ट्रेट जांच के आदेश जारी
जैसे ही यह मामला जिलाधिकारी रविंद्र कुमार मांदड़ के संज्ञान में आया, उन्होंने तत्काल सक्रियता दिखाई और मामले की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए। उन्होंने यह जिम्मेदारी एडीएम सिटी सत्यम मिश्र को सौंपी है।
आरोपों में झलक रहा दर्द और भय
पति द्वारा लिखे गए पत्र में उसकी व्यथा और दर्द साफ झलक रहा है। उसका कहना है कि जब उसने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, तो उसे मिलने नहीं दिया गया। उल्टा, आरोपी अफसर ने उसे जान से मारने की धमकी दी, जिससे पूरे परिवार में भय और तनाव का माहौल बना हुआ है।
खुलासा: विभाग में फैली चर्चा और दबाव
पति ने यह भी दावा किया कि विभाग के अन्य कर्मचारियों को भी इस अवैध संबंध की जानकारी है, लेकिन कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। प्रशासनिक दबाव और अंदरूनी राजनीति की वजह से पीड़ित को लगातार दरकिनार किया जा रहा है।
आत्महत्या की चेतावनी, प्रशासन सतर्क
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि पत्र में पीड़ित पति ने यह तक लिख दिया कि अगर उसकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह आबकारी मुख्यालय के गेट पर आत्महत्या कर लेगा। इसके बाद प्रशासन पूरी तरह से सतर्क हो गया है।
पोस्टिंग में बदलाव की सिफारिश
सूत्रों के अनुसार, मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने महिला सिपाही और संबंधित अफसर की पोस्टिंग को 500 किलोमीटर दूर अलग-अलग जिलों में करने की सिफारिश की है, ताकि परिस्थिति को संतुलित किया जा सके।
यह मामला सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र और विभागीय नैतिकता पर बड़ा सवाल भी खड़ा करता है। ऐसे मामलों में प्रशासन की संवेदनशीलता और त्वरित कार्रवाई न केवल पीड़ित को राहत देती है, बल्कि विभागीय अनुशासन की गरिमा को भी बनाए रखती है।