प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में स्थित ऐतिहासिक ‘फांसी घर’ एक बार फिर सुर्खियों में है। माफिया अतीक अहमद के बेटे के बैरक में नकदी मिलने के बाद उसे इस उच्च सुरक्षा बैरक में शिफ्ट किया गया है। जानें इस जगह का ऐतिहासिक महत्व और आखिरी फांसी का विवरण।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)। नैनी सेंट्रल जेल के भीतर स्थित ऐतिहासिक फांसी घर एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है। कारण है माफिया अतीक अहमद के बेटे को इस उच्च सुरक्षा वाली बैरक में स्थानांतरित किया जाना, जो कभी फांसी पाए कैदियों की अंतिम रात का गवाह हुआ करता था।
दरअसल, बीते दिनों अतीक अहमद के बेटे के बैरक से नकदी बरामद की गई थी। इसके बाद जेल प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से उसे फांसी घर की बैरक में शिफ्ट कर दिया। यह वही खंडहरनुमा इमारत है जहां कभी भारत के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई थी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि यह फांसी घर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि भारत की आजादी की गवाही देने वाली एक ऐतिहासिक धरोहर भी है।
1927 में काकोरी कांड के तहत दोषी पाए गए क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को यहीं फांसी दी गई थी।
जहां राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खान को फैज़ाबाद और राजेंद्र लाहिरी को गोंडा जेल में फांसी दी गई, वहीं रोशन सिंह को प्रयागराज की नैनी जेल में फांसी दी गई थी।
फांसी पर लगी रोक और जेल की वर्तमान स्थिति
1989 के बाद से इस जेल में किसी को फांसी नहीं दी गई है। जेल रिकॉर्ड के अनुसार, आखिरी बार 18 नवंबर 1989 को रायबरेली के भवानीगढ़ निवासी बाबूलाल, अशर्फी और श्रीकृष्ण को हत्या के आरोप में फांसी दी गई थी।
इसके बाद फांसी की सजा पर प्रभावी रोक लगने से यह हिस्सा वीरान और बंद सा पड़ा रहा।
हालांकि, यह हाई सिक्योरिटी बैरक अब भी विशेष मामलों में उपयोग में लाई जाती है। विशेषकर ऐसे कैदी जो जेल में अनुशासन भंग करते हैं या जिनकी सुरक्षा को लेकर विशेष खतरा होता है, उन्हें यहां शिफ्ट किया जाता है।
जेल प्रशासन की नई रणनीति
सूत्रों के अनुसार, जेल प्रशासन अतीक अहमद के बेटे को इस बैरक में इसलिए लाया है क्योंकि यह बाकी कैदियों से बिल्कुल अलग-थलग है और यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं।
यह निर्णय प्रशासन की उस नीति का हिस्सा है, जिसमें हाई-प्रोफाइल या उपद्रवी कैदियों को मुख्यधारा से अलग रखा जाता है।
नैनी सेंट्रल जेल का फांसी घर, जो कभी क्रांतिकारियों की शहादत का प्रतीक था, अब फिर से चर्चा में है। भले ही फांसी की सजा आज निष्क्रिय हो चुकी हो, परंतु इस स्थान का ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक महत्व आज भी उतना ही जीवंत है।