चित्रकूट में एक जीवित व्यक्ति को मृत दिखाकर उसकी पत्नी के नाम पर लोन लेकर ठगी की गई। पीड़ित ने “मैं जिंदा हूं” की तख्ती गले में लटकाकर जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर कार्रवाई की मांग की।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले से एक ऐसा हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसने सरकारी तंत्र और बैंकिंग सिस्टम की मिलीभगत पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक जीवित व्यक्ति को कागजों में मृत दिखाकर उसकी पत्नी के नाम पर स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया और खाते से ₹35,000 की राशि निकाल ली गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़ित को जब इस धोखाधड़ी की भनक लगी, तो उसने अपनी “जिंदा होने” का सबूत देने के लिए गले में तख्ती लटकाई जिस पर लिखा था—”साहब, मैं अभी जिंदा हूँ
🟥 एक झूठे मृत्यु प्रमाणपत्र ने बदल दी जिंदगी
पीड़ित रमेश यादव, जो पहाड़ी थाना क्षेत्र के रघुवर पुरवा रेहुटा गांव का निवासी है, का आरोप है कि उसके ही गांव के राजेन्द्र यादव ने यह फर्जीवाड़ा किया है। शुरुआत में राजेन्द्र ने रमेश से कुछ पैसे उधार मांगे थे, लेकिन जब रमेश ने असमर्थता जताई, तो उसने रमेश की पत्नी के नाम पर स्वयं सहायता समूह के जरिए लोन लेने का सुझाव दिया।
🟡 पहले किस्तें भरी, फिर जालसाजी
रमेश के अनुसार, राजेन्द्र ने ₹35,000 का समूह लोन लिया और कुछ किश्तें भरीं भी, लेकिन बाद में भुगतान में लापरवाही बरती। सबसे बड़ा झटका तब लगा जब राजेन्द्र ने सरकारी अस्पताल से रमेश का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया और बैंक में यह जमा करवा दिया। इसके बाद बैंक ने रमेश के “मृत” घोषित होने के आधार पर बकाया लोन को माफ कर दिया।
🔍 बीमा राशि से हुआ खुलासा
घटना की परतें तब खुलीं जब रमेश के खाते में ₹13,000 की बीमा राशि आई और उसे संदेह हुआ। जब वह अपनी पत्नी को साथ लेकर बैंक पहुंचा, तो पता चला कि उसके नाम पर मृत्यु प्रमाण पत्र लगा है। यह जानकर रमेश के होश उड़ गए।
🔴 शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
रमेश ने 10 मई को जिलाधिकारी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन आज तक आरोपी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। थक-हारकर रमेश ने अब अपनी जिंदा मौजूदगी को सिद्ध करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया—”मैं अभी जिंदा हूं” लिखी तख्ती गले में डालकर जिलाधिकारी कार्यालय की परिक्रमा शुरू कर दी।
🗣️ पीड़ित की मार्मिक अपील
रमेश ने मीडिया को बताया,
“मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था? सिर्फ इसलिए कि मैंने उधार देने से इनकार किया, आज मैं मरा हुआ घोषित कर दिया गया। सरकार और प्रशासन से मेरी बस यही अपील है कि मुझे जिंदा माना जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो।”
🛑 सवालों के घेरे में सिस्टम
इस पूरे मामले ने बैंकिंग तंत्र, सरकारी अस्पताल, और स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- बिना सत्यापन के मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बना?
- बैंक ने कैसे उसे स्वीकार कर लोन माफ किया?
- और आखिर इतने स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अब तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
📢 पीड़ित की मांग
रमेश ने जिलाधिकारी से मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द करने, आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी व जालसाजी में एफआईआर दर्ज करने, तथा समूह लोन में उसका नाम हटाने की गुहार लगाई है।
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🟩 यह घटना न सिर्फ सरकारी मशीनरी की संवेदनहीनता को दर्शाती है, बल्कि आम नागरिकों के साथ हो रही प्रशासनिक अन्याय का एक और जीवंत उदाहरण भी है। सवाल यह है कि अब जब रमेश खुद खड़ा होकर कह रहा है—”मैं अभी जिंदा हूं”, तो क्या प्रशासन उसकी आवाज सुनेगा?
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