दस्यु प्रभाव और जनपद चित्रकूट की सच्चाई
बुंदेलखंड के पिछड़े जिलों में गिने जाने वाले चित्रकूट की बीहड़ धरती कभी दस्युओं के खौफ से कांपती थी। यहां की राजनीति, समाज व्यवस्था और सत्ता परिवर्तन तक पर बीहड़ के फरमानों का असर रहा है। पुलिस, प्रशासन और जनता सब उस समय की दस्यु सत्ता के आगे नतमस्तक दिखाई देते थे।
इन्हीं दस्युओं को संरक्षण देने वाले कुछ लोगों ने खुद को धन, सत्ता और प्रभाव से मालामाल कर लिया।
इसी कड़ी में सबसे चर्चित नाम है—प्रहलाद सिंह पटेल।
झोलाछाप डॉक्टर से ‘दबंग भू-माफिया’ बनने का सफर
एक समय ददुआ गैंग का सक्रिय सहयोगी रह चुका प्रहलाद सिंह पटेल झोलाछाप डॉक्टर के रूप में कुख्यात रहा। जब भी किसी दस्यु को गोली लगती या इलाज की ज़रूरत पड़ती, यही व्यक्ति बिना किसी डिग्री-डिप्लोमा के उनका इलाज करता और पुलिस को गुमराह करता।
प्रहलाद की दस्यु संपर्कों से मिली छूट ने उसे पुलिस कार्रवाई से बार-बार बचा लिया।
सूत्रों के अनुसार, उसने प्रसिद्ध डकैत बुद्धा नाई की हत्या में भी भूमिका निभाई थी, जिसकी रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। इसी के चलते उसके दो भाइयों को पुलिस में भर्ती कराया गया, लेकिन प्रहलाद ने खुद नौकरी छोड़ दी।
अब वही प्रहलाद सिंह पटेल आज ‘भू-माफिया’ बन चुका है, जो ग्रामसभा की सार्वजनिक ज़मीनों पर कब्जा करके अवैध निर्माण कार्य करवा रहा है।
📍ताजा मामला मानिकपुर रूरल के कपरिहा नाला की ज़मीन का है, जहां उसने तारबंदी कर पौधे लगवा दिए हैं और जमीन को अपनी घोषित कर लिया है।
‘बेटे बाप से दो कदम आगे’—पंकज और नारायण की आपराधिक दास्तान
प्रहलाद सिंह पटेल की अपराधिक विरासत उसके बेटों ने न केवल संभाली बल्कि और विस्तार भी दिया।
पंकज सिंह, एक गांव की महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में जेल की सजा काट चुका है। जेल से छूटने के बाद उसने एलएलबी की और वकालत शुरू कर दी। हालांकि, शिकायतों के चलते अब वकालत से दूरी बना ली है, लेकिन मानिकपुर तहसील परिसर में उसकी उपस्थिति नियमित रहती है।
वहीं, दूसरा बेटा एडवोकेट नारायण सिंह, धोखाधड़ी और जालसाजी के मामलों में घिरा है। फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर वरासत के कागजात तैयार किए, जिसकी जांच तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने की और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करवाया।
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➡️ गिरफ्तारी के डर से नारायण सिंह उच्च न्यायालय से अरेस्ट स्टे लेकर अब खुलेआम घूम रहा है और वकालत भी कर रहा है।
प्रेम विवाह की आड़ में जमीनों पर कब्जे का षड्यंत्र
नारायण सिंह ने अनुसूचित जनजाति की एक लड़की से प्रेम विवाह कर लिया, लेकिन अब यह प्रेम विवाह जमीन हथियाने के एक सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।
नारायण सिंह ने अपनी पत्नी के नाम पर अनुसूचित जाति/जनजाति के गरीब लोगों की जमीनें खरीदनी शुरू कीं। दबंगई और भय का माहौल बनाकर, ये निर्दोष लोग अपनी जमीनें बेचने को मजबूर हो गए।
प्रशासन की चुप्पी: डर या साठगांठ…?
यह गंभीर विषय प्रशासन की निष्क्रियता और संभावित सांठगांठ की ओर इशारा करता है। जब एक झोलाछाप डॉक्टर दस्युओं के बल पर करोड़ों की संपत्ति बना ले, उसके बेटे आपराधिक मामलों में नामित होकर भी आज़ाद घूमते रहें, और सार्वजनिक जमीनें खुलेआम कब्जाई जाएं—तो प्रशासनिक चुप्पी सवालों के घेरे में आना लाजमी है।
✅ मुख्य सवाल
- क्या जिला प्रशासन और खुफिया एजेंसियां इस गंभीर प्रकरण की निष्पक्ष जांच करेंगी?
- क्या इन भूमाफियाओं से गरीबों की छीनी गई जमीनें वापस दिलाई जाएंगी?
- क्या अब भी चित्रकूट दस्यु संस्कृति के प्रभाव में जी रहा है?
🔴 यह सिर्फ एक कहानी नहीं, एक व्यवस्था पर सवाल है। यदि जांच नहीं हुई, तो यह चुप्पी अपराधियों को और भी साहसी बनाएगी।
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