Monday, July 21, 2025
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अखिलेश यादव की आलोचना: हक़ीक़त या सियासी हथियार?

क्या अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों में कोई अच्छाई नहीं दिखती? इस तार्किक विश्लेषण में जानिए आंकड़ों और तथ्यों के साथ कि क्या विपक्ष का नजरिया सिर्फ आलोचना तक सीमित है या इसके पीछे ठोस आधार भी हैं।

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच की खींचतान अब एक नया मोड़ ले चुकी है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव लगातार योगी सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है: क्या उन्हें वास्तव में सरकार की कोई भी उपलब्धि नजर नहीं आती? या फिर यह विपक्ष की एक रणनीति है जिसमें हर सरकारी काम को असफल दिखाना ही उद्देश्य है? आइए, इस सवाल का जवाब आंकड़ों, तथ्यों और तर्कों के आधार पर तलाशते हैं।

विपक्ष की जुबान पर सिर्फ नकारात्मकता क्यों?

अखिलेश यादव का सरकार पर लगातार आरोप लगाना उनकी राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। वे कहते हैं कि यूपी में कानून-व्यवस्था ध्वस्त है, किसान त्रस्त हैं और युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही। यह सब सुनकर लगता है कि प्रदेश में सब कुछ गलत ही हो रहा है। लेकिन जब हम सरकारी आंकड़ों और योजनाओं की प्रगति को देखते हैं, तो एक दूसरी ही तस्वीर सामने आती है।

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कानून व्यवस्था पर योगी का दावा बनाम विपक्ष का आक्रोश

क्या माफिया राज वाकई खत्म हुआ या सिर्फ प्रचार?

योगी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही कानून व्यवस्था को प्राथमिकता दी। “माफिया मुक्त यूपी” का नारा देकर अपराधियों के खिलाफ अभियान शुरू हुआ।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, हत्या और अपहरण जैसे संगीन अपराधों में कमी आई है।

अतीक अहमद जैसे बड़े माफियाओं पर कार्रवाई हुई, संपत्तियाँ जब्त हुईं।

150 से ज्यादा संगठित अपराध गैंग खत्म किए गए।

हालांकि विपक्ष इसे “फर्ज़ी एनकाउंटर” बताता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह भी है कि आम जनता को राहत महसूस हो रही है।

एक्सप्रेसवे से एयरपोर्ट तक: क्या विकास भी विपक्ष को चुभता है?

यूपी के इंफ्रास्ट्रक्चर बूम को नकारना कितना जायज़ है?

योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश को “इंफ्रास्ट्रक्चर राज्य” में बदलने का प्रयास किया है

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का निर्माण

जेवर एयरपोर्ट — भारत का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट निर्माणाधीन

ग्रीनफील्ड इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, डिफेंस कॉरिडोर

इन सबका लक्ष्य है निवेश, रोजगार और कनेक्टिविटी बढ़ाना। लेकिन विपक्ष ने कभी इन परियोजनाओं की खुलेआम सराहना नहीं की।

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गैस, घर और राशन: क्या जनता को नहीं दिख रहा ‘डबल इंजन’ का असर?

क्या कल्याणकारी योजनाएं भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएंगी?

योगी सरकार केंद्र की योजनाओं को ज़मीन पर उतारने में आगे रही है:

प्रधानमंत्री आवास योजना: 45 लाख से अधिक घर बने

उज्ज्वला योजना: 1.5 करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन

PM गरीब कल्याण अन्न योजना: कोविड काल में मुफ्त राशन वितरण

विपक्ष इन योजनाओं को “वोट बैंक की राजनीति” बताकर खारिज करता है, लेकिन हकीकत यह है कि लाभार्थियों को इसका वास्तविक फायदा मिला है।

रोजगार पर सियासत: आंकड़े बोलते हैं या भाषण?

अखिलेश का दावा या CMIE का डेटा — किस पर करें यकीन?

अखिलेश यादव का आरोप है कि योगी सरकार ने युवाओं को नौकरी नहीं दी।

दूसरी ओर, CMIE के अनुसार, यूपी में बेरोजगारी दर 2017 में 17% से घटकर 2022 में 4.2% हो गई।

लाख से अधिक सरकारी भर्तियाँ की गईं।

‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ODOP) योजना से 1.5 करोड़ रोजगार उत्पन्न हुए।

तो क्या विपक्ष डेटा को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहा है?

किसानों का सच: MSP, सम्मान निधि और विपक्ष की चुप्पी

 क्या किसान सिर्फ चुनावी मुद्दा हैं?

PM किसान सम्मान निधि से यूपी के 2.5 करोड़ किसान लाभान्वित हुए।

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एमएसपी पर धान और गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हुई।

सिचाई परियोजनाओं और मंडी डिजिटलीकरण में सुधार हुआ।

इसके बावजूद विपक्ष किसानों की दुर्दशा का नैरेटिव बनाए रखता है।

मीडिया, मतदाता और विपक्ष की भूमिका

आलोचना जरूरी, लेकिन अंधविरोध क्यों?

लोकतंत्र में आलोचना लोकतांत्रिक मजबूती का संकेत है, लेकिन यदि यह आलोचना लगातार एकतरफा हो जाए, तो उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाती है। अखिलेश यादव को चाहिए कि जब सरकार कुछ अच्छा करे, तो उसे स्वीकार भी करें — तभी उनकी आलोचना असरदार मानी जाएगी।

विपक्ष की राजनीति नकारात्मकता तक सीमित क्यों?

क्या सिर्फ विरोध करने से विश्वास अर्जित होता है?

विपक्ष का कर्तव्य है कि वह सरकार से सवाल करे, परंतु सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने से जनता को संदेश गलत जाता है। अगर योगी सरकार की कोई योजना, कोई कानून, या कोई प्रोजेक्ट सही दिशा में है, तो विपक्ष का दायित्व है कि वह उस पर समर्थन जताएं या रचनात्मक सुझाव दे।

 जनता अब “हर बात में खोट” की राजनीति को समझने लगी है। विपक्ष को सिर्फ आलोचक नहीं, एक विकल्प बनकर सामने आना चाहिए — तभी लोकतंत्र सशक्त होगा।

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