Monday, July 21, 2025
spot_img

पंजाब की राजनीति में उठता तूफान: खोखले वादों पर जनता का इंकलाब?

अनिल अनूप

पंजाब, जो कभी हरित क्रांति का केंद्र रहा है और देश के राजनीतिक परिदृश्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है, आज राजनीतिक अस्थिरता और असमंजस के दौर से गुजर रहा है। वर्ष 2025 के मध्य में पंजाब की राजनीति में जिस तरह की चहलपहल और घमासान देखा जा रहा है, वह केवल चुनावी रणनीतियों तक सीमित नहीं बल्कि गहरे सामाजिक और आर्थिक बदलावों का संकेत भी देता है। यह रपट पंजाब की हालिया राजनीतिक घटनाओं, प्रमुख दलों की स्थिति, जनता की प्रतिक्रिया, और संभावित भविष्य की दिशा का विश्लेषण करने का प्रयास है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य

पंजाब में वर्तमान में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है, जिसे 2022 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत प्राप्त हुआ था। भगवंत मान के नेतृत्व में सरकार ने कई लोकलुभावन वादे किए, जैसे मुफ्त बिजली, शिक्षा में सुधार, और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम। हालांकि, सरकार की कार्यशैली को लेकर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

विपक्ष, जिसमें कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रमुख हैं, राज्य में जनता की असंतुष्टि को भुनाने की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस राज्य स्तर पर अपने पुनर्गठन में जुटी है, जबकि भाजपा और अकाली दल गठजोड़ के संकेत भी दे रहे हैं।

सरकार के कामकाज पर प्रश्नचिह्न

आप सरकार ने अपने चुनावी वादों में बिजली बिल माफ करने और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की बात की थी। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनता में अपेक्षित विश्वास नहीं बन पाया। पंजाब की 13 में से केवल 3 सीटें ही ‘आप’ को मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 6 और भाजपा ने 2 सीटें हासिल कीं।

इसे भी पढें  ग्राम प्रधान की मौन सहमति में दरिंदगी, रैपुरा पुलिस की लापरवाही ने किया न्याय को शर्मसार

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए शुरू की गई मोहल्ला क्लीनिक योजना धीमी गति से आगे बढ़ रही है। स्कूल ऑफ एमिनेंस जैसे शिक्षा सुधार कार्यक्रमों की आलोचना यह कहकर की जा रही है कि वे सिर्फ कुछ शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं। किसानों की समस्याएँ, जैसे फसल बीमा योजना में गड़बड़ियाँ और मंडी व्यवस्था का विघटन, अब भी यथावत बनी हुई हैं।

किसान आंदोलन की छाया

पंजाब की राजनीति से किसान आंदोलन को अलग नहीं किया जा सकता। 2020-21 के किसान आंदोलन के बाद किसानों में राजनीतिक चेतना बढ़ी है। ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ और अन्य संगठनों का दबाव राज्य सरकार पर निरंतर बना हुआ है। इस समय बिजली बिल, डीजल की कीमतें और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं।

हाल ही में किसानों द्वारा पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर किए गए प्रदर्शन और अमृतसर, बठिंडा, और मोगा में हुई बड़ी रैलियों ने सरकार को कई बार बैकफुट पर ला खड़ा किया। इसके साथ-साथ यह आंदोलन विपक्ष के लिए एक राजनीतिक अवसर भी बनता जा रहा है।

विपक्ष की गतिविधियाँ और गठजोड़ की संभावनाएँ

कांग्रेस, जो लंबे समय तक पंजाब की सत्ता में रही है, अब नवजोत सिंह सिद्धू और प्रताप सिंह बाजवा जैसे नेताओं के सहारे अपनी जमीन मजबूत करने में लगी है। वहीं शिरोमणि अकाली दल, जो 2022 में बुरी तरह हार गया था, अब सिख समुदाय के धार्मिक मुद्दों को पुनः केंद्र में लाकर अपनी खोई हुई पहचान वापस लाने की कोशिश कर रहा है।

इसे भी पढें  अंदरूनी गद्दारी से कांपा कश्मीर! पहलगाम हमले में 15 कश्मीरी शक के घेरे में

भाजपा, जो पहले पंजाब में सीमित उपस्थिति रखती थी, अब मोदी सरकार की योजनाओं के सहारे खासकर शहरी क्षेत्रों में जनाधार बढ़ा रही है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा और शिअद के बीच संभावित गठबंधन की बातचीत प्रारंभिक चरण में है, जिससे राज्य की राजनीतिक गणित में बड़ा बदलाव आ सकता है।

युवा और बेरोजगारी: छुपे हुए कारक

पंजाब की एक बड़ी समस्या बेरोजगारी है। ‘सीएमआईई’ (CMIE) की अप्रैल 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बेरोजगारी दर 9.8% रही, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है। बड़ी संख्या में युवा विदेश पलायन की दिशा में हैं, जो राज्य की कार्यशील जनसंख्या को प्रभावित कर रहा है। आम आदमी पार्टी ने रोजगार गारंटी योजना की घोषणा की थी, लेकिन अब तक इसका क्रियान्वयन अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो सका।

बेरोजगार युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और इनकी राजनीतिक जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। यह वर्ग अगले विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

धार्मिक और जातिगत समीकरण

पंजाब की राजनीति में धर्म और जाति हमेशा निर्णायक कारक रहे हैं। दलित समुदाय, जो जनसंख्या का लगभग 32% हिस्सा है, राजनीतिक दलों के लिए बड़ा वोट बैंक बन चुका है। ‘आप’ ने इस वर्ग को साधने के लिए दलित मुख्यमंत्री दिया, लेकिन इससे केवल आंशिक सफलता मिली। कांग्रेस ने भी ‘चरणजीत सिंह चन्नी’ को मुख्यमंत्री बनाकर इस वर्ग में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की थी, जो अब फिर से सक्रिय हो सकते हैं।

सिख बहुल क्षेत्रों में धार्मिक भावनाओं और गुरुद्वारों की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। शिअद इन मुद्दों के जरिए अपने पुराने मतदाता आधार को पुनः संगठित कर रहा है।

इसे भी पढें  उत्तर प्रदेश BJP में नया अध्यक्ष कौन? जानें संभावित नाम और देरी की वजह

सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार की भूमिका

राज्य में इंटरनेट उपयोग तेजी से बढ़ा है। राजनीतिक दल अब सोशल मीडिया अभियानों पर लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों ही सोशल मीडिया पर आक्रामक प्रचार में लगे हैं। कांग्रेस भी अब डिजिटल प्रचार में पीछे नहीं रहना चाहती और विशेषज्ञों की मदद ले रही है।

व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक लाइव, और इंस्टाग्राम रील्स जैसे साधनों के माध्यम से युवा वर्ग को टारगेट किया जा रहा है। इसके चलते पारंपरिक जनसभाओं की भूमिका धीरे-धीरे सीमित होती जा रही है।

संभावित परिदृश्य

पंजाब की राजनीति एक संक्रमणकाल से गुजर रही है। जहां एक ओर आप सरकार अपनी खोती लोकप्रियता को वापस पाने की कोशिश में है, वहीं विपक्ष रणनीतिक गठजोड़ और जनआंदोलनों के सहारे वापसी की राह पर है। राज्य में अभी भी राजनीतिक स्थिरता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

जनता अब केवल नारों से संतुष्ट नहीं है; वह परिणाम चाहती है। बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार जैसे मुद्दे यदि गंभीरता से हल नहीं हुए, तो आने वाले समय में एक बड़ा सत्ता परिवर्तन हो सकता है।

पंजाब की राजनीति में यह समय अत्यंत निर्णायक है। यदि कोई भी दल जमीनी मुद्दों को ईमानदारी से समझे और उनके समाधान की दिशा में ठोस पहल करे, तो राज्य की राजनीति में स्थायित्व और जनता का विश्वास दोनों ही संभव हैं। वरना, यह चहलपहल केवल चुनावी शोर बनकर रह जाएगी।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
22,400SubscribersSubscribe

नाम की राजनीति पर भड़की जनता—हरदोई को चाहिए सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य… संस्कार नहीं

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का नाम बदलकर "प्रह्लाद नगरी" करने के प्रस्ताव ने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है। जानिए...

फर्जी दस्तखत, फर्जी मरीज, फर्जी खर्च! डॉ. शैलेन्द्र सिंह ने सरकारी योजना को बनाया पैसा उगलने की मशीन

चित्रकूट के रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. शैलेन्द्र सिंह पर लगे भारी वित्तीय अनियमितताओं और आयुष्मान योजना के दुरुपयोग के आरोप। पढ़ें...
- Advertisement -spot_img
spot_img

नगर प्रशासन और तहसील की लापरवाही से फूटा जमीनी विवाद का गुस्सा, भाजपा बूथ अध्यक्ष समेत परिवार पर जानलेवा हमला

अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट  गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती भाजपा बूथ अध्यक्ष व उनके परिवार पर जमीनी विवाद को लेकर हमला। चार साल से प्रशासन...

अस्पताल में मानवता शर्मसार: ऑक्सीजन के लिए तड़पता मरीज ज़मीन पर बैठा, अखिलेश यादव ने सरकार पर बोला हमला

जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ सदर अस्पताल में एक टीबी मरीज की ज़मीन पर बैठकर ऑक्सीजन लेने की वायरल तस्वीर ने प्रदेश...