Monday, July 21, 2025
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जब रिहाई भी सजा जैसी लगी: 103 वर्षीय लखन की कहानी हिला देने वाली है

48 साल तक जेल में रहने के बाद 103 वर्षीय लखन की रिहाई हुई। जब वह गांव लौटे तो न पुराने दोस्त बचे थे, न ही घर का कोई पहचान का चेहरा। एक भावुक कर देने वाली कहानी।

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

कौशांबी,(उत्तर प्रदेश)। कभी-कभी रिहाई भी आजादी जैसी नहीं लगती। उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले से आजीवन कारावास की सजा काट रहे 103 वर्षीय लखन की रिहाई इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, लखन ने 48 वर्ष जेल की सलाखों के पीछे बिताए। जब वह बाहर निकले, तो दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी।

1977 में हुई थी गिरफ्तारी, 48 वर्षों बाद मिला न्याय

लखन पुत्र मंगली को वर्ष 1977 में गांव के एक व्यक्ति की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। तब से वह निरंतर जेल में ही बंद थे। हालांकि, उनका परिवार उन्हें रिहा कराने के लिए वर्षों से प्रयासरत था।

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हालांकि, सफलता उन्हें तब मिली जब जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस मामले को गंभीरता से लिया। जेल अधीक्षक अजितेश कुमार ने प्रकरण को प्राधिकरण की सचिव पूर्णिमा प्रांजल को सौंपा, जिन्होंने लीगल एडवाइजर अंकित मौर्य की नियुक्ति की। इसके पश्चात हाईकोर्ट में अपील दायर की गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कानून मंत्री को भी पूरे मामले से अवगत कराया गया। अंततः, हाईकोर्ट ने मानवीय आधार पर लखन की रिहाई का आदेश दिया।

गांव में लौटे तो पहचानने वाला कोई नहीं था

जैसे ही लखन मंगलवार को जेल से रिहा हुए, जेल प्रशासन ने उन्हें सुरक्षित रूप से घर तक पहुंचाया। परिवार उनकी एक झलक पाने को वर्षों से तरस रहा था। सभी भावुक हो गए, लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिक सकी।

दरअसल, जब लखन गांव की गलियों से गुजरे, तो वहां उनके पुराने दोस्तों, जान-पहचान वालों के चेहरे नदारद थे। जिनके साथ उन्होंने उम्र बिताई थी, वे अब इस दुनिया में नहीं रहे।

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नई दुनिया में अकेलेपन की पीड़ा

इस प्रकार, लखन की रिहाई किसी आजादी से कम नहीं थी, लेकिन यह एक ऐसी दुनिया में लौटने जैसा था, जो उनके लिए पूरी तरह अपरिचित हो चुकी थी। घर के भीतर भी बहुत से सदस्य उन्हें नहीं पहचानते थे क्योंकि जब वे जेल गए थे, तब वे लोग पैदा भी नहीं हुए थे।

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नतीजतन, लखन की आंखों में खुशी से ज्यादा ग़म के आंसू थे। उनकी मायूसी इस बात से स्पष्ट झलकती थी कि अब वह न केवल गुजरे वर्षों पर सवाल उठा रहे हैं, बल्कि इस सजा की अवधि को भी कठोर मानते हैं।

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103 वर्षीय लखन की रिहाई एक कानूनी जीत जरूर रही, लेकिन उनके जीवन के लगभग पांच दशक कैद में बीते। अब जब वह वापस लौटे हैं, तो उनके सामने एक बदली हुई दुनिया है। यह कहानी मानवीय न्याय, संवेदना और समय की क्रूरता का उदाहरण है।

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