Monday, July 21, 2025
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पाक लौटते रिश्ते, जब प्यार बना सियासत का शिकार: अटारी पर टूटी ममता की गोद

पहल्गाम आतंकी हमले के बाद भारत छोड़ने को मजबूर पाकिस्तानी नागरिकों की आंखों से छलकते दर्द की कहानी। अटारी बॉर्डर पर बिछड़ते परिवारों और बेसहारा बच्चों की मर्मांतक तस्वीरें।

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

हालिया पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों पर सख्ती बढ़ा दी है। इस फैसले के चलते पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। अटारी बॉर्डर पर इन दिनों विदाई के दृश्य किसी दुखद फिल्म की तरह बार-बार आंखों में उतरते हैं। दिल को झकझोरने वाले इन लम्हों में कोई अपनी मां से बिछड़ रहा है, तो कोई अपनी मासूम बच्ची को सीने से लगाए अपने देश लौट रहा है—कभी न लौटने के डर के साथ।

फरहीन की आंखों में बसा बिछड़ने का दर्द

इन्हीं में से एक हैं फरहीन, जिन्होंने प्रयागराज के इमरान से शादी की थी और दो वर्षों से भारत में रह रही थीं। अपनी 18 महीने की बच्ची को सीने से लगाए वह कहती हैं, “मेरे बच्चे के पास भारतीय पासपोर्ट है, लेकिन मैं पाकिस्तान जा रही हूं। भारत मुझे नहीं रोक रहा, और पाकिस्तान मेरी बेटी को नहीं आने देगा। सरकारों को कम से कम बच्चों पर तो रहम करना चाहिए।”

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उनकी सास सादिया की आंखें भी नम हैं। वह कहती हैं, “हमने लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई किया था, लेकिन जो हुआ उसकी कोई कल्पना भी नहीं की थी। बच्चा अपनी मां के बिना कैसे रहेगा?”

अधिकारियों के मुताबिक, अब तक 787 पाकिस्तानी नागरिक अटारी बॉर्डर से वापस जा चुके हैं जबकि 1,560 लोग अब भी भारत में हैं। हर दिन बॉर्डर पर रोती-बिलखती माताएं, बच्चों से लिपटते पिता और लंबी ऑटो कतारें दिल को गहरे तक छू जाती हैं।

10 साल की शादी, फिर भी वतन वापसी

दिल्ली में रहने वाली इरा की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं। उन्होंने 10 साल पहले भारत में शादी की थी और हाल ही में ही उन्हें लॉन्ग टर्म वीजा मिला था। लेकिन अब उन्हें भी लौटना पड़ रहा है। वह कहती हैं, “पहल्गाम की घटना निंदनीय है, लेकिन जो लोग परिवारों के साथ रह रहे हैं, सरकार को उनके बारे में भी सोचना चाहिए।”

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समीरा और रिजवान की अधूरी शुरुआत

कुछ ही दूरी पर कराची की समीरा, अपने पति रिजवान के साथ ढाबे पर बैठी हैं। आंखों में आंसू और दिल में डर—समीरा गर्भवती हैं और कहती हैं, “कम से कम जिनके रिश्तेदार यहां हैं, उन्हें तो रहने दिया जाना चाहिए।”

रिजवान जोड़ते हैं, “सरकार को सबको एक ही फैसले में शामिल करने से पहले खास परिस्थितियों पर ध्यान देना चाहिए था।”

सरहद के इस पार इंतजार, उस पार अनिश्चितता

इसी भीड़ में रुबीना भी हैं, जो अपने भाई, भाभी और भतीजों का इंतजार कर रही हैं। उनकी भाभी पाकिस्तानी नागरिक हैं और फिलहाल पाकिस्तान में फंसी हुई हैं। रुबीना कहती हैं, “भाई बिना अपनी पत्नी के वापस नहीं आना चाहते। देखते हैं अब किस्मत क्या फैसला करती है।”

यह सिर्फ वीज़ा और बॉर्डर की कहानी नहीं है। यह उन भावनाओं की दास्तान है जो सरहदों को नहीं मानतीं। आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाना जरूरी है, लेकिन इंसानियत की बुनियाद पर खड़े इन रिश्तों को भी समझना होगा।

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