Monday, July 21, 2025
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जहां चिताएं जलती हैं, वहां जीवन थिरकता है: मणिकर्णिका की 400 साल पुरानी परंपरा

वाराणसी, जिसे मोक्ष की नगरी कहा जाता है, वहां का मणिकर्णिका घाट यूं तो अंतिम संस्कार की चिताओं के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन चैत्र नवरात्रि की सप्तमी की रात यह घाट एक अद्भुत सांस्कृतिक विरासत का साक्षी बनता है।

जहां एक ओर चिताएं जलती हैं, वहीं दूसरी ओर घुंघरुओं की गूंज में जीवन का उत्सव

शुक्रवार की रात, जब सन्नाटा चिताओं की लपटों में तप रहा था, उसी वक्त डोमराज की मढ़ी के नीचे नगर वधुओं के नृत्य की झंकार गूंज रही थी। यह दृश्य जीवन और मृत्यु, शोक और संगीत, तथा भक्ति और मुक्ति की तीव्र इच्छा के बीच एक अलौकिक संतुलन को दर्शाता है।

बाबा मसाननाथ के दरबार में सुरों की आराधना

कार्यक्रम की शुरुआत पंचमकार भोग और तांत्रिक विधि से की गई भव्य आरती से हुई। इसके पश्चात नगर वधुओं ने बाबा को रिझाने के लिए भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति दी— “दुर्गा दुर्गति नाशिनी…”, “डिमिग डिमिग डमरू कर बाजे…” जैसे भक्ति गीतों से घाट का वातावरण भक्तिमय हो उठा। वहीं “ओम नमः शिवाय” और “मणिकर्णिका स्तोत्र” के स्वर पवित्रता का संचार कर रहे थे।

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कला की आराधना: ठुमरी, चैती और होरी की झलक

जैसे-जैसे रात गहराती गई, वैसे-वैसे नगर वधुएं “खेले मसाने में होरी…” जैसी लोकधुनों पर थिरकती रहीं। ठुमरी और चैती के मधुर सुरों ने माहौल को एक आध्यात्मिक रंग में रंग दिया। यह कोई साधारण प्रस्तुति नहीं, बल्कि आत्मा को मुक्त करने वाले भावों की सजीव व्याख्या थी।

परंपरा की उत्पत्ति: जब नगर वधुएं बनीं उत्सव की शान

इतिहास पर नजर डालें तो यह परंपरा 16वीं शताब्दी से चली आ रही है। आयोजक गुलशन कपूर के अनुसार, काशी आए राजा मान सिंह ने मणिकर्णिका तीर्थ पर स्थित श्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। जब संगीतकारों ने मंगल उत्सव में भाग लेने से इनकार कर दिया, तब नगर वधुओं ने आगे बढ़कर यह ज़िम्मेदारी निभाई।

नगर वधुओं का सम्मान और शाश्वत आस्था

बिना किसी निमंत्रण के, केवल अपनी श्रद्धा और कला की भावना से प्रेरित होकर नगर वधुएं हर वर्ष यहां पहुंचती हैं। राजा मानसिंह ने उस समय उनकी इस निःस्वार्थ भक्ति को सम्मान दिया और रथ भेजकर उन्हें आमंत्रित किया। तभी से यह परंपरा एक आस्था का उत्सव बन गई है, जो हर वर्ष चैत्र नवरात्रि की सप्तमी को मनाया जाता है।

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अंत में, यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के रहस्यमयी चक्र का जीवंत चित्रण है— जहां चिता की राख और नृत्य के रंग एक ही धरातल पर मिलते हैं, और मसान में महफिल सजती है, मुक्ति की कामना के साथ।

➡️अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

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