देवरिया, उत्तर प्रदेश में चल रहे अवैध प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। इस रिपोर्ट में जानिए कार्रवाई की पृष्ठभूमि, प्रक्रिया और शिक्षा व्यवस्था पर इसका संभावित प्रभाव।
अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट
देवरिया (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा, जो समाज का मूल स्तंभ मानी जाती है, उस पर जब व्यवसायिक लालच हावी हो जाए, तो शिक्षा का उद्देश्य ही भटकने लगता है। उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़िले में हाल ही में ऐसे ही शिक्षा के व्यावसायीकरण पर प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं। गैर मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ की गई इस कार्रवाई ने न केवल शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि प्रशासन की तत्परता की भी झलक दी है।
कार्रवाई की पृष्ठभूमि
सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि गैर मान्यता प्राप्त स्कूल आखिर होते क्या हैं। ये वे शैक्षणिक संस्थान हैं जो न तो किसी सरकारी बोर्ड से संबद्ध होते हैं, न ही आवश्यक नियमों का पालन करते हैं। बावजूद इसके, ये छात्रों से मोटी फीस वसूलते हैं और शिक्षा का झूठा दिखावा करते हैं।
वर्षों से देवरिया में ऐसे सैकड़ों स्कूल बेधड़क चल रहे थे। शिक्षा विभाग की लापरवाही, राजनैतिक संरक्षण और अभिभावकों की अनभिज्ञता के चलते इन स्कूलों का विस्तार होता रहा। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं।
प्रशासन की सख्ती: कैसे शुरू हुई कार्रवाई?
हाल ही में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में हुई एक समीक्षा बैठक में शिक्षा विभाग ने जिले में संचालित स्कूलों की सूची प्रस्तुत की। इस सूची में 150 से अधिक स्कूल ऐसे पाए गए जो किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से पंजीकृत नहीं थे।
इसके बाद, प्रशासन ने एक विशेष जांच दल गठित किया।
टीमों को विभिन्न क्षेत्रों में भेजा गया और स्कूलों की भौतिक जांच की गई। जांच में यह सामने आया कि अधिकांश स्कूल न तो मान्यता प्राप्त हैं, न ही भवन सुरक्षा, अग्निशमन या शिक्षक योग्यता जैसी बुनियादी शर्तों का पालन कर रहे हैं।
क्या-क्या खामियां सामने आईं?
जांच रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं:
- बिना मान्यता के स्कूल संचालित
- अशिक्षित या न्यूनतम योग्यता वाले शिक्षक
- बच्चों के बैठने तक की समुचित व्यवस्था नहीं
- फीस वसूली के नाम पर मनमानी
- सुरक्षा मानकों की घोर अनदेखी
इनमें से कुछ स्कूलों में तो न तो शौचालय थे, न ही पीने के पानी की व्यवस्था।
स्पष्ट है कि बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य के साथ सीधा खिलवाड़ हो रहा था।
प्रशासनिक कार्रवाई: पहला कदम नहीं, लेकिन निर्णायक प्रयास
इस बार प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। कई स्कूलों को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया गया है। साथ ही संचालकों के खिलाफ U.P. Education Act 2009 के तहत प्राथमिकी दर्ज की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि पहली बार इतनी सघनता से जिला प्रशासन ने शिक्षा के इस अनियमित क्षेत्र पर हाथ डाला है।
क्या यह कार्रवाई पर्याप्त है?
हालांकि यह कार्रवा प्रशंसनीय है, लेकिन यह भी सच है कि यह कोई स्थायी समाधान नहीं है।
इस समस्या की जड़ें गहरी हैं—अभिभावकों की मजबूरी, सरकारी स्कूलों की अव्यवस्था, और शिक्षा में पारदर्शिता की कमी।
इसलिए, केवल स्कूल बंद कर देने से समाधान नहीं निकलेगा। ज़रूरी है कि:
- सरकार प्राथमिक स्कूलों को गुणवत्ता युक्त बनाए
- मान्यता की प्रक्रिया पारदर्शी और सरल बनाई जाए
- अभिभावकों को जागरूक किया जाए
- शिक्षा विभाग की ज़िम्मेदारी तय हो
- भविष्य की राह: शिक्षा में सुधार की दिशा
यदि प्रशासन वास्तव में शिक्षा के स्तर को सुधारना चाहता है, तो यह कदम शुरुआत मात्र है।
इसके आगे ज़रूरी है कि:
- शिक्षा के निजीकरण पर नीति बनाई जाए
- स्थानीय जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाया जाए
- हर साल स्कूलों की निगरानी हो
- शिकायत निवारण तंत्र मजबूत किया जाए
देवरिया में गैर मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों पर हुई कार्रवाई ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा का व्यवसायीकरण हमारे समाज के लिए कितना घातक हो सकता है।
हालांकि यह कार्रवाई एक राहत देने वाला कदम है, मगर इसकी निरंतरता और नीति निर्धारण के साथ ही इसका वास्तविक प्रभाव सामने आएगा।
शिक्षा को व्यापार नहीं, बल्कि अधिकार माना जाए—यही इस कार्रवाई का सबसे बड़ा संदेश होना चाहिए।