Sunday, July 20, 2025
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कनपुरिया ठसक में पीएम मोदी, “कंटाप”, “बकैती” और “भौकाल” में लिपटा भाषण – मोदी का कनपुरिया पंच

प्रधानमंत्री मोदी ने कानपुर की धरती से ‘कनपुरिया’ अंदाज में विपक्ष को ललकारा। अटल बिहारी वाजपेयी और राजू श्रीवास्तव की याद दिलाती जुबान में बोले पीएम, जिससे पूरा शहर जोश से भर उठा। आइए, जानिए क्या है इस बोली का जादू।

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

कानपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रवार को कानपुर दौरा एक साधारण चुनावी सभा से कहीं आगे निकल गया। इस बार उनके भाषण में कुछ ऐसा था जिसने जनता के दिलों को छू लिया—कनपुरिया अंदाज़। जैसे ही उन्होंने कहा, “दुश्मन कहीं भी हो, हौंक दिया जाएगा,” तो पंडाल तालियों और ठहाकों से गूंज उठा। और इसके साथ ही एक साथ दो नाम ज़हन में कौंध गए—अटल बिहारी वाजपेयी और राजू श्रीवास्तव।

दरअसल, पीएम मोदी ने जिस अंदाज में यह बयान दिया, उसने अटल जी की प्रसिद्ध कनपुरिया कहावत “झाड़े रहो कलक्टरगंज” को ताजा कर दिया। अटल जी, जो डीएवी कॉलेज के छात्र रहे, इस बोली के चित-परिचित थे। वही कनपुरिया लहजा जो हर कानपुरी की जुबान पर रहता है—खरा, ठसकदार और मजेदार।

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जब भाषा ही बना दे माहौल

पीएम मोदी की जुबान से निकला ‘हौंक दिया जाएगा‘ शब्द केवल एक ललकार नहीं, बल्कि कानपुर की ज़मीन से निकली असली जुबान थी। और यही बात इस भाषण को खास बना गई। इसे सुनते ही बॉलीवुड फिल्मों जैसे तनु वेड्स मनु, बुलेट राजा और टशन की वो लाइनें याद आ गईं जो यहीं की मिट्टी से गढ़ी गई थीं।कनपुरिया लहजे के चर्चित जुमले और उनका मतलब

कनपुरिया शब्द अर्थ

बकैती बेवजह की बातें करना

हौंकना मार देना या सबक सिखाना

कंटाप थप्पड़ या जोरदार मार

भौकाल रौब या जलवा

चौकस बेहतरीन या सटीक

बकलोली निरर्थक बातें

खलीफा सबसे होशियार या चालाक

चिरांद उलझन या परेशानी

हियां आव यहां आओ

अतीत से वर्तमान तक—भाषा का सफर

कभी कलक्टरगंज की गल्लामंडी में झाड़न बेचने वाले लोगों की बोलचाल में यह भाषा जीवंत थी। वे रात में झाड़न बेचते और दिन में कुर्ता-पायजामा पहनकर ठाठ से निकलते थे। आज वही अंदाज प्रधानमंत्री की जुबान पर आकर पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया।

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स्थानीय सांसद रमेश अवस्थी ने कहा…

प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सिर्फ राजनीति नहीं था, वो दिल से बात कर रहे थे। उनका कनपुरिया अंदाज सीधे लोगों के दिलों में उतर गया। मंधना-अनवरगंज रेलवे ट्रैक से लेकर स्टेशनों के विकास तक कानपुर की तस्वीर बदलने वाली है।”

उन्होंने आगे कहा कि “कानपुर के मन में मोदी और मोदी के मन में कानपुर” का नारा अब केवल नारा नहीं, एक भावना बन चुका है।

अंततः…

कहते हैं भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, भावनाओं का सेतु होती है। और जब कोई प्रधानमंत्री जनता की भाषा में बोले, तो वह केवल नेता नहीं, अपना लगता है। मोदी ने ठीक यही किया। उनका कनपुरिया ठसक न केवल जनता को गुदगुदा गया, बल्कि भावनात्मक रूप से जोड़ भी गया।

झाड़े रहो कलक्टरगंज… और हौंक दिए जाओगे — अब केवल कहावतें नहीं, बल्कि कानपुर की पहचान हैं।

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