Sunday, July 20, 2025
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बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो केस बंद, दूसरा मामला कोर्ट में जारी: पूरा कानूनी घटनाक्रम विस्तार से

बृजभूषण शरण सिंह, पॉक्सो केस अपडेट, महिला पहलवान यौन शोषण, WFI विवाद, पहलवान धरना, बृजभूषण सिंह कोर्ट केस, दिल्ली पुलिस रिपोर्ट, कुश्ती महासंघ विवाद

ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने 26 मई 2025 को भारतीय जनता पार्टी के नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ ‘पॉक्सो एक्ट’ के तहत दर्ज यौन शोषण के मामले को बंद कर दिया।

इस फैसले के तहत कोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट (Closure Report) को स्वीकार कर लिया, जिसमें पुलिस ने कहा था कि इस मामले में आरोपों को साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले।

क्या था मामला?

यह मामला अप्रैल 2023 में उस वक्त सामने आया जब एक नाबालिग़ पहलवान के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने आरोप लगाया कि बृजभूषण शरण सिंह ने उनकी नाबालिग बेटी का यौन उत्पीड़न किया और जब उसने इसका विरोध किया, तो उसके साथ कुश्ती संघ में भेदभाव शुरू हो गया, जिससे उसके करियर पर नकारात्मक असर पड़ा।

इस शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस ने:

पॉक्सो एक्ट की धारा 10 (गंभीर लैंगिक हमला)

IPC की धारा 354 (महिला की लज्जा भंग करना), 354A (यौन उत्पीड़न) और 354D (पीछा करना) के तहत एफआईआर दर्ज की थी।

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क्यों बंद हुआ मामला?

हालांकि, कुछ ही दिनों बाद नाबालिग़ पहलवान के पिता ने अपना बयान बदल लिया। उन्होंने अदालत में कहा कि उन्होंने और उनकी बेटी ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ ‘कुछ गलत आरोप लगाए’ थे।

इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इस केस में विस्तृत तहक़ीक़ात की। पुलिस ने अन्य पहलवानों और कोचों से भी पूछताछ की, लेकिन कोई भी सबूत आरोपों की पुष्टि नहीं कर पाया। पुलिस ने जून 2023 में अदालत में एक रिपोर्ट दायर कर केस को ‘निस्तारित’ करने की सिफारिश की।

फिर अगस्त 2023 में अदालत ने पीड़िता और उसके पिता के बयान दर्ज किए, लेकिन कई बार केस की सुनवाई स्थगित होती रही – कभी जज छुट्टी पर रहे, कभी जांच अधिकारी अनुपस्थित रहे तो कभी वकीलों की हड़ताल रही।

अंततः 26 मई 2025 को अदालत ने पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली और पॉक्सो का केस बंद कर दिया।

क्या यह अंतिम फैसला है?

हालांकि केस बंद हो गया है, लेकिन कानूनी दृष्टि से यह पूरी तरह समाप्त नहीं माना जा सकता। भारतीय आपराधिक कानून के तहत:

अगर कोर्ट, पुलिस या पीड़ित को कोई नया सबूत मिलता है, तो केस को दोबारा खोला जा सकता है।

कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह नए सिरे से जांच के आदेश दे सकती है।

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पीड़ित पक्ष ‘प्रोटेस्ट पिटीशन’ दाखिल कर केस फिर से चलाने की मांग कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में स्पष्ट किया गया है कि कानून का उद्देश्य “सच तक पहुँचना” है, न कि केवल प्रक्रिया का पालन करना।

दूसरा मामला अभी जारी है

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एक और केस फिलहाल कोर्ट में लंबित है। अप्रैल 2023 में छह महिला पहलवानों ने उन पर भारत और विदेशों में दस वर्षों के दौरान यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

इस मामले में एफआईआर बृजभूषण शरण सिंह और कुश्ती महासंघ के तत्कालीन सचिव विनोद तोमर के खिलाफ दर्ज की गई थी।

चार्जशीट और अदालती कार्यवाही

मई 2024 में अदालत ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 और 354A के तहत बृजभूषण सिंह के खिलाफ चार्ज फ्रेम (Charges Framed) किए। ये चार्ज छह में से पाँच महिला पहलवानों की शिकायतों पर आधारित हैं।

एक महिला पहलवान की शिकायत पर कोर्ट ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया है। वहीं, विनोद तोमर के खिलाफ क्रिमिनल इंटिमिडेशन की धाराएं लगाई गई हैं।

बृजभूषण सिंह ने इन आरोपों को भी गलत बताया है और स्वयं को निर्दोष बताया है। उन्हें अगस्त 2023 में जमानत मिल चुकी है और जांच एजेंसी ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया था। कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका का विरोध भी नहीं किया था, बस कुछ शर्तें लगाने की बात कही थी।

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वर्तमान में अभियोजन पक्ष गवाह और सबूत पेश कर रहा है, और मामला न्यायिक प्रक्रिया में आगे बढ़ रहा है।

जब पहलवान सड़क पर उतरे

इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत जनवरी 2023 में हुई जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया जैसे प्रमुख पहलवानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन शुरू किया।

उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ उनकी शिकायत को दर्ज नहीं किया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट का मामला भले ही अभी के लिए समाप्त हो गया हो, लेकिन दूसरा केस अभी भी कोर्ट में सक्रिय है।

इस प्रकरण ने भारतीय खेल जगत में यौन उत्पीड़न को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं और देशभर में चर्चा का विषय बना है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में कोर्ट इस केस में क्या फैसला सुनाता है और क्या इससे भारतीय खेल संस्थाओं में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।

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