चित्रकूट में वाणिज्यकर विभाग में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। अधिकृत ड्राइवर की जगह एक अवैध व्यक्ति विभागीय गाड़ी चला रहा है और रात में जमकर अवैध वसूली कर रहा है। सवाल उठता है—क्या जिम्मेदार अधिकारी अनजान हैं या मूक दर्शक?
चित्रकूट से संजय सिंह राणा की विशेष रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद में वाणिज्यकर विभाग से जुड़ा एक गंभीर और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। विभाग में तैनात एक अधिकृत ड्राइवर ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ा दी हैं। यह फर्जीवाड़ा न केवल विभागीय नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह जिम्मेदार अधिकारी जानबूझकर आंख मूंदे बैठे हैं।
जयराज पाण्डेय: नाम सरकारी, काम निजी
विभागीय दस्तावेजों के अनुसार, जयराज पाण्डेय, निवासी ऐंचवारा, वर्ष 2016 में वाणिज्यकर विभाग में ड्राइवर के पद पर नियुक्त हुए थे। लेकिन अब जो स्थिति सामने आई है, वह हैरान कर देने वाली है। जयराज पाण्डेय द्वारा अपने स्थान पर विष्णु पाण्डेय, निवासी राजापुर—जो रिश्ते में उनका भतीजा और साढ़ू का पुत्र है—को अवैध रूप से ड्राइवर के रूप में नियुक्त कर रखा गया है।
गंभीर अनियमितता: न नियुक्ति पत्र, न कोई विभागीय रिकॉर्ड
सबसे बड़ी विसंगति यह है कि विष्णु पाण्डेय की विभाग में कोई आधिकारिक नियुक्ति नहीं है। इसके बावजूद, वह नियमित रूप से विभागीय गाड़ी चला रहा है। सूत्रों के अनुसार, विष्णु एसडीएम कॉलोनी में निवास करता है और सचल दल प्रभारी नदीम खान की बोलेरो गाड़ी UP 32 EG 5166 को लेकर रात-दिन ‘वसूली ड्यूटी’ पर लगा रहता है।
विभागीय ड्राइवर बना अधिकारी जैसा ‘भौकाल’
दूसरी ओर, असली ड्राइवर जयराज पाण्डेय विभागीय कार्यों में न लगकर ‘मजिस्ट्रेट’ लिखी बैगनआर गाड़ी से अकेले घूमता नजर आता है, मानो कोई वरिष्ठ अधिकारी हो। सवाल उठता है—जब विष्णु पाण्डेय ड्राइवर नहीं है, तो वह सरकारी गाड़ी कैसे चला रहा है? और जयराज, जो नियुक्त ड्राइवर है, आखिर किस हैसियत से अकेले वाहन का उपयोग कर रहा है?
क्या विभाग के अधिकारी अनजान हैं या संलिप्त?
विभागीय सचल दल प्रभारी नदीम खान वर्तमान में सीतापुर में निवास करते हैं, जबकि विष्णु पाण्डेय चित्रकूट में रहकर उनकी गाड़ी का उपयोग कर रहा है। यह सीधे तौर पर आचरण संहिता और प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन है। सवाल यह भी है कि क्या नदीम खान को इसकी जानकारी नहीं है, या फिर जानबूझकर यह खेल चलने दे रहे हैं?
प्रशासन की चुप्पी: मौन स्वीकृति या लापरवाही?
इतना बड़ा फर्जीवाड़ा विभाग के अंदर लंबे समय से चल रहा है, लेकिन अभी तक न तो कोई आंतरिक जांच शुरू की गई है और न ही विष्णु पाण्डेय को हटाने की कोई प्रक्रिया। इससे यह संकेत मिलता है कि विभागीय अधिकारी या तो इस साजिश में मौन सहभागी हैं, या फिर लापरवाही के कारण आंखें मूंदे बैठे हैं।
अब सवाल उठते हैं…
1. विष्णु पाण्डेय को किस अधिकार से सरकारी गाड़ी चलाने की अनुमति दी गई?
2. जयराज पाण्डेय का व्यक्तिगत वाहन उपयोग कौन स्वीकृत कर रहा है?
3. क्या विभाग के उच्चाधिकारियों को इस पूरे मामले की जानकारी नहीं है?
4. क्या इस पूरे प्रकरण में आर्थिक लेनदेन की परतें भी जुड़ी हैं?
अब जनता और शासन की निगाहें
इस पूरे मामले को लेकर जिले में प्रशासनिक हलकों में खलबली है। यदि जल्द ही इस पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो यह प्रकरण और गहराता जाएगा। वहीं, शासन को चाहिए कि वह इस गंभीर फर्जीवाड़े की निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों के विरुद्ध कड़ी विभागीय व कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करे।
वाणिज्यकर विभाग का यह मामला केवल एक ड्राइवर के फर्जीवाड़े का नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता, जिम्मेदारी की कमी और भ्रष्ट मानसिकता की बड़ी मिसाल बनकर सामने आया है। यदि इस पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला विभाग की साख को और अधिक नुकसान पहुंचा सकता है।