चित्रकूट के रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. शैलेन्द्र सिंह पर लगे भारी वित्तीय अनियमितताओं और आयुष्मान योजना के दुरुपयोग के आरोप। पढ़ें पूरा मामला विस्तार से।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट जनपद की स्वास्थ्य व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस बार मामला रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से जुड़ा है, जहां अधीक्षक डॉ. शैलेन्द्र सिंह पर वित्तीय फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
स्थानीय ग्रामीण अंजेश कुमार द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) को भेजी गई शिकायत में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं, जिससे न केवल जिला स्वास्थ्य विभाग की साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी गंभीर शंका उत्पन्न हो रही है।
आरोपों की विस्तृत श्रृंखला
सबसे पहले, आरोप है कि डॉ. शैलेन्द्र सिंह ने कार्यक्रम अधिकारी बी.डी. सिंह के ट्रांसफर के बावजूद उनके फर्जी हस्ताक्षर कर सरकारी धन की निकासी की। यह आरोप बेहद गंभीर है, क्योंकि यह सीधे तौर पर दस्तावेज़ों की जालसाजी और वित्तीय दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।
इसके साथ ही यह भी सामने आया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र छीबों, जिसका इंचार्ज कौन है यह भी स्पष्ट नहीं, वहां के नाम पर भी डॉ. सिंह ने धन की हेराफेरी की। इस प्रकार, न सिर्फ अपने अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग हुआ, बल्कि अनाधिकृत स्थानों से भी पैसे निकाले गए — जो स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है।
आयुष्मान भारत योजना का दुरुपयोग
इतना ही नहीं, आयुष्मान भारत जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण योजना में भी फर्जीवाड़े के आरोप लगाए गए हैं। अंजेश कुमार का कहना है कि अस्पताल में अब तक न तो कोई मरीज भर्ती हुआ है, न ही मरीजों के खाने-पीने की व्यवस्था हुई, और न ही किसी प्रकार का रजिस्टर संधारित किया गया। बावजूद इसके, इस योजना के अंतर्गत धन निकासी की गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि योजना को सिर्फ धन कमाने के जरिये के रूप में इस्तेमाल किया गया।
आरटीआई में भी उभरीं विसंगतियाँ
इस पूरे प्रकरण की गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब जन सूचना अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत मांगी गई जानकारियों में भी डॉ. शैलेन्द्र सिंह पर लगे आरोपों की पुष्टि होती है। RTI में यह सामने आया है कि डॉ. सिंह का ट्रांसफर पहले ही मानिकपुर हो चुका था, इसके बावजूद उन्होंने रामनगर सीएचसी के खाते से पैसे निकाले। जब इन आरोपों पर सफाई मांगी गई तो अधीक्षक ने RTI का जवाब देकर इन्हें “निराधार” बताने की कोशिश की — जो खुद में एक सवालिया बयान है।
इस्तीफा या बचाव का दांव?
जब मामले ने तूल पकड़ा, तब डॉ. शैलेन्द्र सिंह ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखकर “निजी कारणों” का हवाला देते हुए अधीक्षक पद से इस्तीफा देने का अनुरोध किया। हालांकि यह कदम अधिकतर लोगों की नजर में एक बचाव की रणनीति प्रतीत होती है, जिससे वह जांच से बच सकें और अपने पद के प्रभाव से कागजातों में फेरबदल कर अपनी भूमिका को छुपा सकें।
संदिग्ध भूमिका में मुख्य चिकित्सा अधिकारी?
इस पूरे घटनाक्रम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी भूपेश द्विवेदी की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में आ गई है। उन्होंने डॉ. शैलेन्द्र सिंह के अनुरोध को स्वीकार करते हुए उन्हें अधीक्षक पद से हटाकर चिकित्सक के रूप में अस्पताल में ही तैनात कर दिया, जबकि मामला स्पष्ट रूप से जांच का विषय था। इतना ही नहीं, डॉ. देवेन्द्र मणि त्रिपाठी को अधीक्षक का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, लेकिन यह व्यवस्था तब तक निष्प्रभावी रहेगी जब तक जांच निष्पक्ष रूप से नहीं होती।
जब सरकारी अस्पतालों में भ्रष्टाचार की जड़ें इस कदर गहरी हो चुकी हों, कि योजनाओं में मरीजों के बिना ही पैसा निकाल लिया जाए, तो यह न केवल निंदनीय है बल्कि चिंता का विषय भी है। एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिए हजारों करोड़ खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ अधिकारी अपनी निजी चर्बी बनाने में व्यस्त हैं।
इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच आवश्यक है, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दोषियों को बख्शा न जाए — चाहे वह अधीक्षक हो या मुख्य चिकित्सा अधिकारी। यदि प्रशासन ने आंखें मूंद लीं, तो आने वाले समय में न सिर्फ जन स्वास्थ्य सेवाएं चरमराएँगी, बल्कि जनता का विश्वास भी टूटेगा।