जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ सदर अस्पताल में एक टीबी मरीज की ज़मीन पर बैठकर ऑक्सीजन लेने की वायरल तस्वीर ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। अखिलेश यादव ने इस पर सरकार को घेरा, जांच के आदेश दिए गए हैं।
अस्पताल या उपेक्षा का अड्डा?
उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत एक बार फिर उजागर हो गई है। आज़मगढ़ जिले से एक बेहद शर्मनाक और दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया है। यह वीडियो न केवल चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोलता है, बल्कि यह भी बताता है कि ‘जनता का स्वास्थ्य’ आज भी सरकार की प्राथमिकता से कोसों दूर है।
वायरल वीडियो ने खोली स्वास्थ्य महकमे की कलई
दरअसल, वायरल हो रहा यह वीडियो आज़मगढ़ के सदर अस्पताल का है, जहां एक गंभीर टीबी मरीज, राजू नामक व्यक्ति — ऑक्सीजन मास्क लगाए ज़मीन पर बैठा नजर आ रहा है। यह दृश्य किसी ट्रॉमा सेंटर का नहीं, बल्कि एक सरकारी मंडलीय अस्पताल का है, जहां मानवीय गरिमा की खुलेआम अनदेखी की गई।
महत्वपूर्ण बात यह है कि मरीज को पहले से ही चेस्ट इन्फेक्शन और टीबी की शिकायत थी और 17 जुलाई को उसे अस्पताल में भर्ती किया गया था। हालात बिगड़ने पर डॉक्टरों ने ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता समझी, लेकिन दुर्भाग्यवश उसे एक अदद बेड तक नसीब नहीं हुआ।
मजबूरी में ज़मीन बनी शरण
बेड की अनुपलब्धता और निगरानी की कमी के चलते मरीज को खुद ही ऑक्सीजन मशीन तक जाना पड़ा और ज़मीन पर बैठकर अपना इलाज खुद जारी रखना पड़ा।
इस दिल दहला देने वाले क्षण को किसी व्यक्ति ने मोबाइल से रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर साझा कर दिया। वीडियो सामने आते ही स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया।
अखिलेश यादव का सीधा प्रहार: “स्वास्थ्य मंत्री जी, क्या अब भी आंखें खुलेंगी?”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मामले को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला।
उन्होंने ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर यह वीडियो साझा करते हुए कटाक्ष किया—
“स्वास्थ्य मंत्री जी को ये मरीज दिख रहा है क्या? ये है प्रदेश की ‘महाभ्रष्ट स्वास्थ्य व्यवस्था’ का जीवंत उदाहरण!”
इस बयान ने पूरे प्रकरण को राजनीतिक तूल दे दिया और शासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया।
प्रशासन की ‘सफाई’ पर उठे सवाल
मामले के तूल पकड़ते ही सदर अस्पताल के सीनियर इंटेंडेंट ऑफ क्लिनिक डॉ. ओम प्रकाश सिंह सामने आए और एक भिन्न तर्क प्रस्तुत किया।
उनके अनुसार –
“मरीज ने बेड पर ही शौच कर दिया था, जिसके बाद वह नीचे उतरकर अपनी पत्नी का इंतजार कर रहा था। इलाज समय पर दिया गया।”
डॉ. सिंह ने वीडियो को गोपनीयता का उल्लंघन बताते हुए यह भी कहा कि मरीज की ऐसे हालत में वीडियो बनाना नैतिक और कानूनी रूप से अनुचित है।
हालाँकि, सवाल यह है कि अगर मरीज को पर्याप्त सुविधा और देखरेख मिली होती, तो उसे ऐसी स्थिति का सामना क्यों करना पड़ा?
जांच के आदेश, जवाबदेही अधर में
जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, स्वास्थ्य विभाग हरकत में आ गया। सिस्टम इंचार्ज को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और पूरी घटना की रिपोर्ट मांगी गई है।
इस बीच एक बड़ा प्रश्न यह भी उठ खड़ा हुआ है — आम व्यक्ति वार्ड तक जाकर मरीज का वीडियो आखिर बना कैसे सका? क्या सुरक्षा तंत्र केवल कागजों में सजीव है?
इससे स्पष्ट होता है कि न केवल मरीज की देखभाल में चूक हुई, बल्कि अस्पताल की सुरक्षा और निगरानी प्रणाली भी पूरी तरह लचर है।
हालात सुधारने के लिए तत्परता या लीपापोती?
फिलहाल मरीज राजू को टीबी वार्ड के एक अन्य बेड पर शिफ्ट कर दिया गया है और दो डॉक्टरों को उसकी देखरेख में लगाया गया है। प्रशासन का यह भी कहना है कि अगर मरीज को यहां समुचित सुविधा नहीं मिली, तो उसे किसी बाहरी चिकित्सा केंद्र में रेफर किया जाएगा।
क्या यह सिर्फ एक मामला है?
इस प्रकरण ने सिर्फ एक मरीज की पीड़ा नहीं, बल्कि प्रदेश की समग्र स्वास्थ्य प्रणाली की दरकती हुई बुनियाद को उजागर किया है।
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प्रशासनिक सफाई और राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे, सवाल यह है कि क्या ऐसे हालातों में कोई भी आम नागरिक खुद को सुरक्षित मान सकता है?
क्या ‘जनकल्याण’ अब केवल घोषणाओं तक सीमित रह गया है?
अब देखने वाली बात यह होगी कि यह मामला महज़ सोशल मीडिया तक सीमित रह जाएगा या फिर यह व्यवस्था में वास्तविक सुधार का कारण बनेगा।