कानपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिदत्त नेमी को यूपी सरकार ने निलंबित कर दिया है। सीएमओ ने डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह पर भ्रष्टाचार, जातिसूचक गालियां और उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। जानिए पूरी खबर विस्तार से।
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में जिला प्रशासन के दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच टकराव अब खुलकर सामने आ गया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. हरिदत्त नेमी को उत्तर प्रदेश सरकार ने निलंबित कर दिया है। यह फैसला उस समय लिया गया जब उनका विवाद जिलाधिकारी (DM) जितेंद्र प्रताप सिंह के साथ चरम पर पहुंच गया।
विवाद की जड़ में क्या है?
दरअसल, सीएमओ और डीएम के बीच पिछले पांच महीनों से चला आ रहा टकराव अब सार्वजनिक हो चुका है। निलंबन के बाद सीएमओ डॉ. नेमी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डीएम पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “मैंने भ्रष्टाचार का विरोध किया, जिसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा।”
सीएमओ का गंभीर आरोप:
प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि,
“डीएम ने मुझसे पैसे मांगे, सिस्टम में शामिल होने का दबाव डाला और कहा – ‘दुनिया कमा रही है, तुम भी कमाओ।’ जब मैंने मना किया, तो उन्होंने मुझे बर्बाद करने की धमकी दी। उन्होंने कई बार जातिसूचक गालियां भी दीं।”
यही नहीं, सीएमओ ने यह भी आरोप लगाया कि डीएम ने एक बी-फार्मा कंपनी को बिना सामग्री आपूर्ति किए भुगतान कराने के लिए दबाव बनाया। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें निशाना बनाया गया।
“मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न हुआ”
सीएमओ ने आगे कहा कि,
“डीएम ने मीटिंग के दौरान मेरे सिर और नाक पर हाथ मारा। जब मैंने सीबीआई चार्जशीटेड व्यक्ति राजेश शुक्ल के भुगतान पर रोक लगाई, तो मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा गया।”
उन्होंने दावा किया कि संबंधित कंपनी ने जो बैच दिया, वह भिन्न था और इसकी जानकारी पत्र के माध्यम से डीएम को दी गई थी।
“राजनीति और जातीय भेदभाव का भी शिकार बना”
सीएमओ ने भावुक स्वर में कहा कि उन्हें जातीय समीकरण और राजनीति का भी शिकार बनाया गया। उन्होंने दावा किया कि डीएम बार-बार कहते थे –
“सिस्टम में आओ, वरना भुगतोगे।”
मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
हरिदत्त नेमी ने अपनी बात को पुख्ता करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्र भी प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा है। पत्र में उन्होंने विस्तार से पूरी घटना का जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि प्रमुख सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को भी मेल और व्हाट्सएप के जरिए इसकी जानकारी दी गई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
“SFO अधिकारी भी बना रही थीं दबाव”
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि SFO अधिकारी वंदना सिंह बार-बार फोन और पत्र भेजकर राजेश शुक्ल के भुगतान का दबाव बना रही थीं। उन्होंने कहा,
“मुझे साजिश के तहत फंसाया गया है। मैं इस पूरे मामले को न्यायालय में ले जाऊंगा।”
क्या कहती है सरकार?
फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएमओ को निलंबित कर दिया है और पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह कार्रवाई निष्पक्ष जांच के बाद हुई, या फिर सिस्टम में शामिल न होने की सजा है?
कानपुर में सीएमओ और डीएम के बीच का यह टकराव प्रशासनिक व्यवस्था पर कई गंभीर प्रश्न खड़े करता है। अगर सीएमओ के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न सिर्फ प्रशासनिक नैतिकता की विफलता है, बल्कि सत्तातंत्र में भ्रष्टाचार और जातिगत राजनीति की भयावह तस्वीर भी है।
आगे देखना होगा कि क्या सरकार इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराएगी या फिर यह मामला भी राजनीति की धूल में गुम हो जाएगा।