वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के खिलाफ सेवायत गोस्वामी समाज की महिलाओं द्वारा तीन सप्ताह से चल रहा विरोध-प्रदर्शन हेमा मालिनी से आश्वासन मिलने के बाद फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। महिलाओं ने परियोजना व न्यास गठन पर गहरी आपत्ति जताई।
ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट
वृंदावन, मथुरा। वृंदावन में प्रस्तावित बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर और मंदिर प्रबंधन के लिए गठित किए जा रहे सरकारी ट्रस्ट (न्यास) के विरोध में सेवायत गोस्वामी समाज की महिलाओं द्वारा चल रहा तीन सप्ताह का आंदोलन फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। यह निर्णय तब लिया गया जब मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने आंदोलनरत महिलाओं से मिलकर उनकी चिंताओं को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया।
बैठक में रखा गया विरोध का पक्ष
गौरतलब है कि मंगलवार को आंदोलन कर रही महिलाओं ने हेमा मालिनी के वृंदावन स्थित आवास पर उनसे भेंट की। बैठक के दौरान उन्होंने विस्तार से अपनी आपत्तियों और आशंकाओं को रखा। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि कॉरिडोर निर्माण की प्रक्रिया में उन्हें उनके पारंपरिक आवास और पूजा स्थलों से हटाने की संभावना है, जिससे ठाकुरजी की सेवा-पूजा बाधित होगी और वृंदावन की प्राचीन धार्मिक-सांस्कृतिक परंपराओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की अपील
महिलाओं ने ज्ञापन सौंपते हुए हेमा मालिनी से आग्रह किया कि वे इस संवेदनशील मुद्दे को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष सहानुभूति के साथ रखें। प्रदर्शनकारियों को उम्मीद है कि यदि उनकी भावनाएं सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचती हैं, तो संभवतः इस मामले का कोई संतुलित और सम्मानजनक समाधान निकल सकता है।
सांसद हेमा मालिनी ने दी प्रतिक्रिया
हेमा मालिनी ने आंदोलनरत महिलाओं को समझाते हुए कहा कि सरकार की मंशा किसी को परेशान करने की नहीं, बल्कि श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाने की है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि संभवतः परियोजना से जुड़े संवाद में कुछ कमियां रह गई हैं, जिनकी भरपाई की जाएगी।
उन्होंने आश्वासन दिया कि सेवायतों की पूजा परंपरा और रहन-सहन के अधिकारों को सुरक्षित रखने की मांग को गंभीरता से लिया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रशासन की योजना वृंदावन की सीमा में ही सेवायत परिवारों के लिए नई व्यवस्था करने की है।
न्यास पर भी जताई आपत्ति
महिलाओं ने यह भी मांग की कि मंदिर के लिए गठित किए गए सरकारी न्यास को रद्द किया जाए। उनके अनुसार, इससे मंदिर की स्वायत्तता और पारंपरिक पूजा पद्धति पर खतरा उत्पन्न होगा।
भावी दिशा स्पष्ट नहीं
हालांकि आंदोलन अभी स्थगित हुआ है, लेकिन महिलाओं ने स्पष्ट किया है कि यदि सरकार द्वारा उनकी आशंकाओं का समाधान नहीं किया गया, तो वे फिर से संघर्ष की राह अपना सकती हैं। इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि विकास और परंपरा के बीच संतुलन साधना किसी भी धार्मिक-आध्यात्मिक स्थल पर अत्यंत संवेदनशील कार्य होता है।
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर चल रहा विवाद केवल एक निर्माण परियोजना का विरोध नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों पुरानी धार्मिक परंपराओं, पूजा-पद्धति और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा का सवाल है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस विरोध और आशंकाओं का समाधान किस तरह निकालती है।