Monday, July 21, 2025
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मशीनें घर में, मार्केटिंग सड़कों पर—अभय सिंह ने चप्पल बिजनेस से रचा इतिहास

बलरामपुर के शिक्षक अभय सिंह ने प्रधानमंत्री मुद्रा लोन से चप्पल निर्माण व्यवसाय शुरू कर आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल की। जानिए उनके स्टार्टअप की सफलता की कहानी।

नौशाद अली की रिपोर्ट

रामानुजगंबज(बलरामपुर), संघर्ष, संकल्प और समय की सही पहचान हो तो कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बलरामपुर जिले के रामानुजगंज निवासी अभय सिंह ने, जो अब अपने इलाके में प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं। अभय सिंह, जो पेशे से एक शिक्षक हैं और रामानुजगंज के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में अंग्रेजी के प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत मिले लोन से अपना खुद का चप्पल निर्माण व्यवसाय शुरू कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश की है।

शुरुआत एक छोटे से आइडिया से

दरअसल, सोशल मीडिया से प्रेरणा लेकर अभय ने चप्पल व्यवसाय की योजना बनाई। शुरुआती दौर में महज 50,000 रुपये की पूंजी से उन्होंने इस स्टार्टअप की नींव रखी। हालांकि, मैनपावर और संसाधनों की कमी से उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसी दौरान किसी परिचित से उन्हें प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की जानकारी मिली, जिसने उनके सपनों को नई दिशा दे दी।

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मुद्रा लोन से मिला सहारा

अभय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से 5.50 लाख रुपये का मुद्रा लोन प्राप्त किया और दिल्ली से आधुनिक मशीनें एवं कच्चा माल मंगवाकर अपने ही घर से चप्पल निर्माण का काम शुरू किया। आज, वे अपने परिवार के साथ मिलकर इस व्यवसाय को सफलतापूर्वक चला रहे हैं।

चप्पल निर्माण की प्रक्रिया

अभय बताते हैं कि एक जोड़ी चप्पल बनाने में लगभग 16 मिनट का समय लगता है। पहले शीट को माप कर कटिंग मशीन से काटा जाता है, फिर ग्राइंडर मशीन से फिनिशिंग दी जाती है। इसके बाद प्रिंटिंग मशीन से डिजाइन तैयार कर स्ट्रिप फिटिंग मशीन से स्ट्रिप लगाई जाती है। तैयार चप्पल को डब्बों में पैक कर स्थानीय दुकानों तक पहुंचाया जाता है।

लागत और मुनाफा

चप्पल की लागत उनके आकार पर निर्भर करती है। छोटे बच्चों की एक जोड़ी चप्पल बनाने की लागत 22-25 रुपये, जबकि बड़ों के लिए 55-60 रुपये तक आती है। एक जोड़ी पर लगभग 10 से 15 रुपये का मुनाफा होता है। इससे रोजाना लगभग 1000 रुपये की आमदनी हो रही है।

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परिवार बना साझीदार

इस व्यवसाय में अभय की पत्नी प्रियांशी सिंह भी बराबर की भागीदार हैं। वे चप्पल निर्माण में सहयोग करती हैं जबकि अभय मार्केटिंग पर अधिक ध्यान देते हैं। प्रियांशी कहती हैं,

“पहले एक प्राइवेट नौकरी में खर्च चलाना मुश्किल होता था, लेकिन अब घर चलाने में आसानी हो रही है। पीएम मोदी ने हमारी जिंदगी बदल दी है।”

भविष्य की योजनाएं

अभय ने बताया कि जैसे-जैसे व्यवसाय बढ़ रहा है, सेल्स और ग्राहक भी बढ़ रहे हैं। वे आने वाले समय में नए कर्मचारियों की भर्ती करने की योजना बना रहे हैं ताकि वे स्कूल और बिजनेस दोनों को संतुलित कर सकें। फिलहाल, कच्चा माल दिल्ली से मंगवाना पड़ता है, लेकिन रायपुर से भी संपर्क में हैं। यदि स्थानीय स्तर पर रॉ मटेरियल मिलने लगेगा तो उत्पादन लागत और भी घट जाएगी।

अभय सिंह की यह कहानी न केवल स्वरोजगार की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसे सरकारी प्रयास सही हाथों में पहुंचे तो देश में रोजगार के नए द्वार खुल सकते हैं।

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