भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक वापसी ने भारत के अंतरिक्ष युग का प्रथम अध्याय लिखा है। पढ़िए इस ब्रह्मांडीय मिशन की विस्तारपूर्वक समीक्षा।
✍️अनिल अनूप, संपादक — समाचार दर्पण 24
जब कोई अपने घर लौटता है तो यह केवल एक भौतिक वापसी नहीं होती — यह वापसी होती है भावनाओं की, साहस की, और उस यात्रा की जिसे शब्दों में समेटना मुश्किल होता है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की पृथ्वी पर वापसी भी ठीक वैसी ही थी — एक ‘दूसरे जन्म’ की तरह, जैसा कि उनकी मां ने भावुक होकर कहा। यह केवल एक अंतरिक्ष यात्रा की समाप्ति नहीं, बल्कि भारत के लिए अंतरिक्ष युग के प्रथम अध्याय का शुभारंभ है।
‘शून्य के उस पार’ से लौटता हुआ जीवन
कल्पना कीजिए, वह क्षण जब अंतरिक्ष यान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है — बाहर तापमान 1700 डिग्री सेल्सियस तक, भीतर पूरा दल मौन, चारों ओर एक भयावह सन्नाटा। यह वह क्षण होता है जब अंतरिक्ष और पृथ्वी के बीच का हर संवाद शून्य हो जाता है। और उस शून्य के बीच से यदि कोई जीवित, सुरक्षित लौटता है, तो वह केवल एक यात्री नहीं रहता — वह इतिहास बन जाता है।
शुभांशु शुक्ला और उनके तीन सहयात्रियों ने यह अद्भुत कार्य कर दिखाया है। यह केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी, यह मानवीय जिजीविषा, वैज्ञानिक यथार्थ और राष्ट्रीय स्वाभिमान की साझी उड़ान थी।
अंतरिक्ष की विराटता और भारतीय पहचान
शुभांशु शुक्ला पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने, जिन्होंने अंतरिक्ष स्टेशन के भीतर प्रवेश किया और 18 दिन का सफल मिशन पूरा कर लौटे। यह यात्रा किसी फिल्मी रोमांच से कम नहीं थी। उन्होंने पृथ्वी की 322 परिक्रमाएं कीं, अंतरिक्ष स्टेशन की गति रही 28,000 किमी/घंटा और कुल दूरी लगभग 1.40 करोड़ किमी। इस दूरी में कोई यात्री चंद्रमा पर 35 बार जाकर लौट सकता था — यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं, बल्कि अकल्पनीय कीर्तिमान है।
हालांकि राकेश शर्मा 1984 में अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे, लेकिन वह पृथ्वी की कक्षा में ही रहे। उस समय अंतरिक्ष स्टेशन जैसी व्यवस्था नहीं थी। आज, जब भारत अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों की बुनियाद रख रहा है, तब शुभांशु शुक्ला जैसे वैज्ञानिक-सैनिक अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं।
अंतरिक्ष में विज्ञान की प्रयोगशाला
इस यात्रा की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि इसमें केवल उपस्थिति नहीं थी, बल्कि विज्ञान का सर्जनात्मक प्रयोग हुआ। शुभांशु ने 7 विशिष्ट प्रयोग किए जो आने वाले अंतरिक्ष अभियानों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होंगे।
उन्होंने अंतरिक्ष में मेथी और मूंग के बीजों को अंकुरित कर यह दिखा दिया कि खाद्य सुरक्षा और पोषण की दिशा में अंतरिक्ष में भी संभावनाएं हैं। यही नहीं, उन्होंने माइक्रोएल्गी पर काम किया जो भविष्य में ऑक्सीजन और बॉयोफ्यूल का स्रोत बन सकते हैं। अंतरिक्ष में सूक्ष्मजीवों की जीवन-प्रक्रिया, जीन परिवर्तन, प्रजनन और पुनर्जीवन पर शोध किया गया। यह प्रयोग भावी अंतरिक्ष निवास के लिए नींव की तरह हैं।
एक प्रयोग में उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान आंखों की गति, मस्तिष्क में रक्त प्रवाह, उच्च स्तर की CO₂ की प्रतिक्रिया जैसे मनोवैज्ञानिक और जैविक बदलावों को समझने की कोशिश की। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण के अभाव में मानव शरीर कैसे प्रतिक्रिया देता है — इस पर मांसपेशियों और हड्डियों की स्थिति की जांच भी की गई।
जब वापसी भी चुनौती होती है
अंतरिक्ष से लौटने के बाद भी यह यात्रा खत्म नहीं होती। गुरुत्वाकर्षण के बिना शरीर की हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। यात्री को पुनः पृथ्वी के वातावरण के अनुसार ढलने में वक्त लगता है। शुभांशु और उनकी टीम को भी अब पुनर्वास, मेडिकल परीक्षण और मानसिक अनुकूलन की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
इस मिशन में एक मानसिक परीक्षण भी किया गया — ‘Acquired Equivalence Test’, जो यह जांचता है कि कोई व्यक्ति अंतरिक्ष में कितनी देर मानसिक रूप से संतुलित रह सकता है। यह भविष्य की उन यात्राओं के लिए अहम है जो चंद्रमा, मंगल या उससे भी दूर की ओर होंगी।
भारत की ‘अपवादीय उपलब्धि’
इस मिशन के जरिए भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह अब केवल अंतरिक्ष की ओर देखता नहीं, बल्कि उसे नापने की क्षमता रखता है। शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में जाकर जो वैज्ञानिक कार्य किए, वे आने वाले ‘गगनयान’ मानव मिशन की नींव को मजबूती प्रदान करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन कि “यह एक अरब सपनों को प्रेरणा देने वाली घटना है,” पूर्णतः सार्थक प्रतीत होता है। आज जब पूरी दुनिया अंतरिक्ष की तरफ कदम बढ़ा रही है, तब भारत भी उस दौड़ में स्वाभिमान और विज्ञान दोनों लेकर खड़ा है।
एक नई शुरुआत — और भी दूर जाना है
यह यात्रा कोई अंत नहीं है, यह तो आरंभ की यात्रा है। अंतरिक्ष का वह पहला पृष्ठ लिखा जा चुका है, जिस पर भारत का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया है। लेकिन यह पूरी किताब नहीं है — आगे मंगल की योजनाएं, चंद्रयान के अगले चरण, अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और लंबी अवधि के मानव मिशन की तैयारी शामिल है।
शुभांशु जैसे वैज्ञानिकों के अनुभव आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक ग्रंथ बनेंगे। अंतरिक्ष में जीवन संभव हो सकेगा, वहां वनस्पतियां उगाई जाएंगी, ऑक्सीजन उत्पन्न होगी, जल के स्रोत खोजे जाएंगे — यह सब अब केवल कल्पना नहीं, यथार्थ की संभावना बन चुका है।
अंतिम शब्द: जब कोई लौटता है तो इतिहास बनाता है
शुभांशु शुक्ला अब केवल एक पायलट नहीं हैं, वे आधुनिक भारत के ‘अर्जुन’ हैं, जिन्होंने पृथ्वी और अंतरिक्ष के बीच के अदृश्य सेतु को पार कर दिखाया। वह आग के गोले से निकलकर, उस शून्य को चीरकर लौटे हैं, जहां हर एक क्षण मृत्यु की छाया तले बीतता है।
जब अगली बार कोई बच्चा अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने का सपना देखेगा, तो वह राकेश शर्मा के साथ शुभांशु शुक्ला को भी याद करेगा।