महराजगंज के अमरूतिया खास गांव में हाई कोर्ट के आदेश पर प्रशासन ने रास्ते की जमीन पर बने 9 घरों को बुलडोजर से गिरा दिया। बारिश के मौसम में खुले में आए कई परिवार, विधवाओं ने बिना नोटिस कार्रवाई का आरोप लगाया।
नौशाद अली की रिपोर्ट
महराजगंज, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के अमरूतिया खास गांव में गुरुवार को एक बड़े प्रशासनिक एक्शन ने कई परिवारों की ज़िंदगी को हिला कर रख दिया। हाई कोर्ट के सख्त आदेश के अनुपालन में, जिला प्रशासन ने भारी पुलिस बल की मौजूदगी में रास्ते की जमीन पर बने नौ घरों को जमींदोज कर दिया। जैसे ही बुलडोजर की गड़गड़ाहट गांव में गूंजी, पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई।
बरसात में बर्बादी की मार
बारिश के मौसम में यह कार्रवाई उन परिवारों के लिए दोहरी त्रासदी बन गई, जो अब सिर छुपाने के लिए भी जगह नहीं ढूंढ पा रहे हैं। पीड़ितों में कई विधवा महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्होंने इस कार्रवाई को पूरी तरह अमानवीय करार दिया। उनका कहना है कि उन्हें न तो कोई पूर्व सूचना दी गई, न ही किसी पुनर्वास की व्यवस्था की गई।
“इस बरसात में कहां जाएंगे? कुछ दिन की मोहलत तो दे दीजिए”, यह गुहार वहां मौजूद महिलाओं की जुबान पर बार-बार आ रही थी, मगर बुलडोजर के पहिए नहीं रुके।
कोर्ट के आदेश का हवाला
प्रशासन का कहना है कि यह कार्रवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशों के तहत की गई। बताया गया कि गांव में सार्वजनिक रास्ते की जमीन पर कई सालों से अवैध निर्माण कर लिए गए थे। मामला जब न्यायालय में पहुंचा, तो कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि अतिक्रमण हटाया जाए।
इसी आदेश के अनुपालन में तहसील प्रशासन और पुलिस बल ने संयुक्त रूप से अभियान चलाकर इन नौ मकानों को ध्वस्त कर दिया। इस दौरान दो मंजिला मकानों तक को गिरा दिया गया।
पीड़ितों का आरोप: कार्रवाई में भेदभाव
हालांकि, गांववालों का आरोप है कि प्रशासन ने कार्रवाई में भेदभाव बरता है। उन्होंने दावा किया कि कुल 10 मकानों पर एक्शन होना था, लेकिन सिर्फ नौ को ही तोड़ा गया। इससे यह संदेह पैदा होता है कि कहीं किसी को ‘बचाया’ तो नहीं गया?
एक विधवा महिला ने भावुक होते हुए कहा,
“सरकार कहती है कि हर गरीब को घर मिलेगा। लेकिन हमारे पास कोई नोटिस नहीं आया, न कोई अधिकारी समझाने आया। सीधे बुलडोजर चला दिया। अब बच्चों के साथ बारिश में कहां जाएं?”
प्रशासन का पक्ष
इस पूरे मामले में नायब तहसीलदार देशदीपक त्रिपाठी ने कहा कि,
“यह कार्रवाई पूर्णतः हाई कोर्ट के आदेशों के अनुरूप की गई है। जिन मकानों को तोड़ा गया है, वे सार्वजनिक रास्ते की जमीन पर अवैध रूप से बने थे।”
उन्होंने यह भी बताया कि शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए चार थानों की पुलिस फोर्स तैनात की गई थी, जिससे किसी भी प्रकार की अव्यवस्था को रोका जा सके।
न्याय और मानवता के बीच टकराव
हालांकि कोर्ट का आदेश और प्रशासन की मजबूरी अपनी जगह है, लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या ऐसे मामलों में मानवीय पहलू की अनदेखी की जा सकती है? बरसात में खुले आसमान के नीचे पहुंच चुके बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की व्यथा को देखकर यही कहा जा सकता है कि न्यायिक आदेशों का पालन करते हुए भी मानवता को बचाए रखना प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है।
महराजगंज के इस बुलडोजर एक्शन ने न सिर्फ अतिक्रमण के सवालों को फिर से जीवित कर दिया है, बल्कि सरकारी कार्रवाई में मानवीय संवेदना की कमी को भी उजागर किया है। अब देखना होगा कि प्रशासन इन विस्थापितों के पुनर्वास के लिए क्या कदम उठाता है, या यह भी एक और सरकारी ‘कहानी’ बनकर रह जाएगा।