Monday, July 21, 2025
spot_img

जहां इश्क़ और इन्कलाब एक ही मिसरा हो गए—वहीं था मजाज़

“असरार-उल-हक़ मजाज़ उर्फ़ मजाज़ लखनवी: वह शायर जिनकी शायरी में इश्क़ और इन्कलाब एक साथ गूंजते थे। पढ़िए उनकी ज़िन्दगी और लेखनी की खास कहानी।”

अनिल अनूप

उर्दू शायरी के आसमान में कई सितारे चमके, मगर कुछ ऐसे भी हुए जो तारे नहीं, बल्कि खुद चांद बन गए—नर्म रोशनी से दिलों को संवारते हुए। असरार-उल-हक़ मजाज़, यानी मजाज़ लखनवी, ऐसे ही एक चांद थे—जिनकी रौशनी में इश्क़ भी था और इन्कलाब भी, रूमानी ख़्वाब भी थे और समाज की तल्ख़ हक़ीक़तें भी।

मोहब्बत का मुशायरा, क्रांति का कारवां

वो एक ऐसा वक्त था जब शायरी महज़ तफ़रीह नहीं, तहज़ीब का आईना बन गई थी। शायर किसी रहनुमा से कम नहीं माने जाते थे। और मजाज़? मजाज़ तो उस कारवां के वो रहबर थे जो दिलों को गुलाब की तरह महकाते हुए इन्कलाब की हवा में उड़ने का हौसला देते थे।

इस्मत चुगताई अपनी आत्मकथा ‘कागज़ है पैरहन’ में मजाज़ का जिक्र करते हुए लिखती हैं—
“जब मजाज़ का दीवान ‘आहंग’ छपा, तो गर्ल्स कॉलेज की लड़कियाँ इसे अपने तकियों में छिपाकर रखती थीं और पर्चियां निकालती थीं कि किसे मजाज़ अपनी दुल्हन बनाएंगे।”

क्या यह किसी मामूली शायर की शायरी का असर हो सकता है? बिल्कुल नहीं। मजाज़ की शायरी दिल की ज़ुबान थी, जिसे सुनकर धड़कनें तेज़ हो जाती थीं और आँखें ख़्वाब बुनने लगती थीं।

Read  सावन: हरियाली में लिपटी संवेदनाओं की ऋतु ; चूड़ियों की छनक, झूले की सरसराहट — सावन आयो री सखी… 

शब्दों में रूमानी क्रांति

जहां इन्कलाबी शायरों की ज़बान तल्ख़ और तेज़ हुआ करती थी, वहीं मजाज़ के लहजे में एक मोहब्बत-सी नरमी थी। उनकी क्रांति गूंज नहीं करती थी, बल्कि दिल में उतरती थी।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने उनके बारे में बिल्कुल सही कहा—
“मजाज़ क्रांति का प्रचारक नहीं, क्रांति का गायक है। उसके नग़मे में बरसात की सी शीतलता और वसंत की सी प्रिय गर्मी है।”

और इसी लिए, मजाज़ गा सके—
“जिगर और दिल को बचाना भी है,
नज़र आप ही से मिलाना भी है…”

यह पंक्तियाँ महज़ शेर नहीं, जीवन दर्शन हैं—जहां संघर्ष है, लेकिन उसमें एक नज़ाकत भी है।

शायरी की सरज़मीं पर मजाज़ का कारवां

19 अक्टूबर, 1911, को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रुदौली गांव में जन्मे असरार-उल-हक़ का भविष्य कुछ और लिखा था। पिता चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने, मगर उनकी क़िस्मत में लफ़्ज़ों की इमारतें थीं, इश्क़ के नक़्शे और इन्कलाब की छतें।

Read  चिनाब का पानी रोकोगे तो रखोगे कहां- मत करो युद्ध ', अरशद मदनी के बयान पर भाजपा का पलटवार

मजाज़ की शिक्षा आगरा और अलीगढ़ में हुई। साइंस से मोह भंग हुआ तो आर्ट लिया और फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बी.ए. किया। इसी शहर में उन्होंने मोहब्बत को जाना, और इन्कलाब को महसूस किया।

“आओ मिलकर इन्किलाब ताज़ा पैदा करें”

मजाज़ की यह पंक्ति महज़ एक आह्वान नहीं थी, बल्कि उनकी आत्मा की पुकार थी। वो चाहते थे कि शायरी समाज की बेड़ियों को तोड़े, लेकिन प्यार की लय में।

“दहर पर इस तरह छा जाएं कि सब देखा करें…”
यह अहंकार नहीं, आत्मविश्वास था—कि अगर मोहब्बत और न्याय एक सुर में गूंजे, तो कोई ताक़त उन्हें रोक नहीं सकती।

मजाज़: एक बेचैन रूह

1935 में मजाज़ ने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की, जहां वे पत्रिका ‘आवाज़’ के सहायक संपादक रहे। लेकिन, एक आज़ाद रूह भला कितने दिनों तक एक दफ्तर की दीवारों में क़ैद रह सकती है?

वो चले आए फिर से ग़ज़लों की गलियों में, जहाँ उनका हर शेर भीगी आंखों और तपते दिलों की नज़्र होता।

Read  DM बनी सिस्टम की शेरनी, अधिकारियों की बैठक में भड़कीं डीएम, ट्रांसफर-पोस्टिंग पर नेताजी को लगाई फटकार!

कम लिखा, मगर अमर लिखा

मजाज़ ने ज़्यादा नहीं लिखा, मगर जितना भी लिखा, उसमें आग भी थी और गुलाब भी। उनकी शायरी में भावनाएं नदी की तरह बहती हैं—कभी कोमल, कभी वेगवान।

उनकी लोकप्रियता का कारण केवल उनकी लेखनी नहीं, बल्कि उनके लहजे की रवानी, शब्दों का सलीका और विचारों की ऊंचाई थी।

एक अंतहीन विरासत

आज जब हम मजाज़ को याद करते हैं, तो महज़ एक शायर की याद नहीं करते। हम एक ऐसे दौर की याद करते हैं जिसमें शायरी समाज का आइना थी और शायर उसकी आत्मा।

मजाज़ लखनवी वही थे, जहाँ इश्क़ और इन्कलाब एक ही मिसरा बन गए थे। उनकी शायरी में मोहब्बत की गहराई और इन्कलाब की बुलंदी एक-दूसरे की पूरक थीं।

मजाज़ लखनवी उर्दू शायरी की वो आवाज़ हैं जो समय से परे है। उनकी रचनाएं आज भी दिलों को छूती हैं और चेतना को जगाती हैं। वे साबित करते हैं कि जब इश्क़ और इन्कलाब मिल जाएं, तो शायरी महज़ साहित्य नहीं, एक आंदोलन बन जाती है।


Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
22,400SubscribersSubscribe

न्यूज़ पोर्टल को गैरकानूनी बताना कानून की अवहेलना है—पढ़िए सच्चाई

जगदंबा उपाध्याय की खास रिपोर्ट हाल के दिनों में एक भ्रामक और तथ्यविहीन खबर सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और कुछ पोर्टलों पर बड़ी तेजी से फैल...

बड़े शहरों जैसी सुविधाएं अब ग्रामीण बच्चों के लिए भी सुलभ… ग्राम प्रधान की दूरदर्शी सोच से शिक्षा को मिला नया आयाम…

✍ संजय सिंह राणा की रिपोर्ट ग्राम पंचायत रैपुरा (चित्रकूट) में निःशुल्क डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना से शिक्षा का नया युग शुरू हो चुका है।...
- Advertisement -spot_img
spot_img

डिजिटल जाल में फंसा इंसान: जब एक वीडियो कॉल आपकी ज़िंदगी बदल देता है

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट 21वीं सदी का इंसान जितना आगे तकनीक में बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से उसके जीवन में खतरे भी गहराते...

स्कूल बंद करने के फैसले के खिलाफ आम आदमी पार्टी का हल्ला बोल, बच्चों-अभिभावकों संग गेट पर धरना

आजमगढ़ में आम आदमी पार्टी का शिक्षा बचाओ आंदोलन तेज, प्राथमिक विद्यालय पल्हनी को बंद करने के फैसले के विरोध में बच्चों-अभिभावकों संग जोरदार...