Sunday, July 20, 2025
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71 साल बाद खुलेगा बेतिया रानी का खजाना : 200 करोड़ की तिजोरी से उठेगा राजघराने के वैभव का परदा!

71 साल बाद फिर चर्चा में आईं बेतिया राज की रानी जानकी कुंवर। प्रयागराज स्थित उनकी कोठी की तिजोरी खुलने को तैयार, जिसमें छुपा है 200 करोड़ से भी अधिक का खजाना। जानिए उनके जीवन की रोचक कहानी।

प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। बिहार के तीन प्रमुख राजघरानों में से एक बेतिया राज की अंतिम महारानी जानकी कुंवर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गई हैं। लगभग 71 वर्षों पूर्व, यानी 27 नवंबर 1954 को प्रयागराज स्थित अपनी कोठी में उनका निधन हो गया था। उनके निधन के बाद कोर्ट्स ऑफ वार्ड ने न केवल उनकी आलीशान कोठी को कब्जे में लिया, बल्कि उसमें मौजूद तिजोरी को भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की त्रिवेणी शाखा में सुरक्षित रखवा दिया गया।

अब, बिहार राजस्व परिषद की टीम प्रयागराज पहुंचकर इस ऐतिहासिक संपत्ति को चिन्हित करने में जुटी है। इसी कड़ी में, रानी की तिजोरी को भी खोलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस तिजोरी में 200 करोड़ रुपये से भी अधिक मूल्य की संपत्ति बंद है।

कौन थीं बेतिया रानी जानकी कुंवर?

इतिहास के पन्नों में झांकें तो पता चलता है कि जानकी कुंवर केवल एक रानी नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी हस्ती थीं जिनके जीवन से जुड़ी कहानियों ने साहित्य और संस्कृति दोनों को प्रभावित किया। अमिताभ बच्चन के पिता, प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन, ने अपनी आत्मकथात्मक कृतियों ‘अधूरे ख्वाब’ और ‘बसेरे से दूर’ में बेतिया रानी का जिक्र बड़े आदर और कौतूहल से किया है। यहां तक कि खुद अमिताभ बच्चन भी आज तक रानी के जीवन और उनकी कोठी को लेकर उतने ही उत्सुक हैं, जितने वे अपने बचपन में थे।

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बेतिया राज का इतिहास और उत्तराधिकार का संकट

बात है साल 1883 की, जब बेतिया राज के महाराजा राजेंद्र किशोर सिंह का निधन हो गया। इसके बाद उनके पुत्र हरेंद्र किशोर सिंह ने गद्दी संभाली। वे न केवल कुशल प्रशासक थे, बल्कि ब्रिटिश सरकार ने भी उनकी नेतृत्व क्षमता को मान्यता देते हुए उन्हें ‘महाराजा बहादुर’, ‘नाइट कमांडर’ जैसी उपाधियों से नवाजा था।

हालांकि, महाराजा हरेंद्र सिंह की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि उनके कोई संतान नहीं थी। पहले उन्होंने शिव रत्ना कुंवर से विवाह किया, और बाद में जानकी कुंवर से भी, परंतु संतान सुख उन्हें न मिल सका। अंततः 26 मार्च 1893 को वे बिना उत्तराधिकारी के इस दुनिया से विदा हो गए।

रानी जानकी कुंवर – सौंदर्य की प्रतिमूर्ति और विरासत की वारिस

हरेंद्र सिंह के निधन के बाद, पहले शिव रत्ना कुंवर ने थोड़े समय के लिए राजकाज संभाला, लेकिन उनके निधन के बाद सारी संपत्ति जानकी कुंवर के पास आ गई। उनके सौंदर्य की चर्चा पूरे क्षेत्र में होती थी। कहा जाता है कि उनकी आंखों में ऐसी गहराई थी कि कोई एक बार देख ले तो नजरें हटाना मुश्किल हो जाएं। उनके होठों और गालों में ऐसी लालिमा थी कि मानो गुलाब की पंखुड़ियां मुस्कुरा रही हों।

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हरिवंश राय बच्चन ने भी रानी के सौंदर्य और उनकी कोठी की भव्यता का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। हालांकि, राजकाज चलाने की उनकी क्षमता सीमित थी, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्तियों को कोर्ट्स ऑफ वार्ड के अधीन कर दिया।

प्रयागराज में बिताया अंतिम जीवनकाल

बेतिया से निकलकर जानकी कुंवर प्रयागराज आ गईं, जहां उन्होंने एक भव्य कोठी का निर्माण कराया। यह कोठी आज भी करीब 22 बीघा क्षेत्र में मौजूद है और सरकारी नियंत्रण में है। यहीं पर 27 नवंबर 1954 को उनका निधन हुआ।

उनकी मृत्यु के बाद कोठी समेत उनकी अन्य संपत्तियों पर सरकार ने अधिकार जमा लिया। वहीं, तिजोरी को बंद कर स्टेट बैंक में सुरक्षित रखा गया, जिसमें अब 70 वर्षों से भी अधिक पुराना खजाना छुपा है।

अब क्या है स्थिति?

हाल ही में, बिहार सरकार की राजस्व परिषद ने इस ऐतिहासिक संपत्ति पर फिर से ध्यान दिया है। प्रयागराज पहुंची टीम ने कोठी और संपत्तियों को चिन्हित करना शुरू किया है। तिजोरी को खोलने की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। यह ऐतिहासिक क्षण है, जब इतिहास के पन्नों में बंद एक रानी की कहानी फिर से जीवंत हो रही है।

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बेतिया रानी जानकी कुंवर का जीवन केवल एक राजवंश की कथा नहीं है, बल्कि यह उस गौरव, सौंदर्य और विरासत की कहानी है जो समय के गर्त में खो चुकी थी। अब जब उनकी तिजोरी खुलने को है, तो यह ना केवल उनके खजाने को सामने लाएगा, बल्कि उनकी विरासत को भी फिर से जीवित करेगा।

➡️अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

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