Sunday, July 20, 2025
spot_img

राणा सांगा बनाम बाबर : खानवा का युद्ध और भारत में मुग़ल साम्राज्य की नींव

जानिए कैसे मेवाड़ के शक्तिशाली शासक राणा सांगा और बाबर के बीच 1527 में हुआ खानवा का युद्ध भारतीय इतिहास में निर्णायक मोड़ बना। प्रस्तुत है समाचार दर्पण द्वारा विशेष विश्लेषण।

पंद्रहवीं सदी में मेवाड़ का उदय

पंद्रहवीं सदी में उत्तर भारत में मेवाड़ एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरा। इसकी नींव बप्पा रावल ने रखी थी, जो गुजरात से आकर राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में बसे। यहीं से शुरू हुआ वह गौरवशाली इतिहास, जिसने आगे चलकर राणा सांगा के नेतृत्व में नया रूप लिया।

राणा सांगा का सत्ता संभालना और विजय अभियान

1508 ई. में 27 वर्षीय राणा सांगा ने अपने भाइयों के साथ सत्ता संघर्ष के बाद मेवाड़ की गद्दी संभाली। सत्ता संभालते ही उन्होंने अपना सैन्य अभियान प्रारंभ किया। सबसे पहले आबू और बूंदी जैसे छोटे राजाओं ने संधि की राह पकड़ी। आमेर के राजा माधो सिंह को बंदी बनाकर राणा सांगा ने अपनी शक्ति का परिचय दे दिया।

Read  आकाशीय बिजली की चपेट में आया गरीब दलित परिवार, बाल-बाल बचे जानमाल का नुकसान
मालवा और दिल्ली पर प्रभुत्व

1517 में उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद द्वितीय को हराकर चित्तौड़ ले आए। उसी वर्ष इब्राहीम लोदी के साथ खतौली में हुई लड़ाई में सांगा की जीत हुई, लेकिन उन्हें गंभीर रूप से घायल होना पड़ा — उनका एक हाथ कटवाना पड़ा। फिर भी वे एक हाथ से तलवारबाज़ी सीखकर मैदान में डटे रहे।

बाबर का आगमन और राणा सांगा से संबंध

इसी बीच, फ़रग़ना घाटी से बाबर का आगमन हुआ। 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई से पहले इब्राहीम लोदी के विरोधियों ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया। बाबरनामा के अनुसार, राणा सांगा का दूत भी बाबर से मिला था, लेकिन वादा निभाने की बाबर को कोई स्पष्ट पुष्टि नहीं मिली।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर को भारत आमंत्रित कर लोदी को हटाने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में बाबर के रुकने से स्थिति बदल गई।

Read  गोद के नाम पर सौदे : तीन औरतें, खौफनाक कहानियां और मासूमों बच्चों की मंडी, घटनाएं रुह कंपा देती हैं… 
पानीपत के युद्ध के बाद बढ़ता तनाव

1526 में पानीपत की जीत के बाद बाबर दिल्ली का शासक बना, लेकिन उसकी सबसे बड़ी चुनौती थी राणा सांगा। अफ़ग़ान शक्तियाँ, जिनमें इब्राहीम लोदी का भाई महमूद लोदी भी शामिल था, राणा सांगा के साथ हो लिए। राजपूत रियासतों ने भी एकजुट होकर मेवाड़ के इस नायक को समर्थन दिया।

खानवा का ऐतिहासिक युद्ध: 1527

बाबर ने आगरा के पास खानवा को युद्धभूमि चुना। एक तरफ़ थी बाबर की संगठित और रणनीतिक रूप से प्रशिक्षित सेना, जिसके पास तोपख़ाना और युद्ध की योजना थी; दूसरी ओर थी राणा सांगा की विशाल, परंतु अनुशासनहीन फौज।

राणा सांगा स्वयं अग्रिम पंक्ति में लड़े — एक आँख, एक हाथ और एक पैर खोने के बावजूद उनकी वीरता अद्वितीय थी। हालांकि, बाबर की रणनीति, उसकी तोपें और अनुशासन ने निर्णायक रूप से युद्ध का रुख पलट दिया। जैसे ही राणा सांगा घायल होकर हौदे से नीचे गिरे, सेना का मनोबल टूट गया।

Read  पब्लिक स्कूल के छात्रों का नीर्वा कंपनी में इंडस्ट्रियल विज़िट, व्यावहारिक अनुभव से हुए लाभान्वित

खानवा की हार और राणा सांगा का अंत

खानवा की हार ने न केवल राणा सांगा के साम्राज्य विस्तार को रोका, बल्कि दिल्ली-आगरा क्षेत्र में बाबर की स्थिति को भी सुदृढ़ कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि बाबर से युद्ध जारी रखने की जिद के कारण उनके दरबारियों ने उन्हें विष दे दिया। 47 वर्ष की आयु में राणा सांगा का निधन हो गया, जिससे संयुक्त राजस्थान के सपने को बड़ा झटका लगा।

राणा सांगा केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक ऐसा शासक थे जिन्होंने मेवाड़ को भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख शक्तियों में शामिल किया। खानवा की लड़ाई में हार भले ही मिली हो, लेकिन उनका साहस, नेतृत्व और दूरदर्शिता आज भी भारतीय इतिहास में प्रेरणा का स्रोत हैं।

➡️संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
22,400SubscribersSubscribe

विधवा की पुकार: “मुझे मेरी ज़मीन लौटा दो” — दबंगों से त्रस्त महिला न्याय के लिए दर-दर भटक रही

चित्रकूट के मानिकपुर की विधवा महिला न्याय के लिए गुहार लगा रही है। दबंगों द्वारा ज़मीन कब्जाने की कोशिश, फसल कटवाने का आरोप और...

हर बार वही शिकायत! तो किस काम के अधिकारी?” – SDM ने लगाई फटकार

चित्रकूट के मानिकपुर तहसील सभागार में आयोजित संपूर्ण समाधान दिवस में उपजिलाधिकारी मो. जसीम ने अधिकारियों को दो टूक कहा—"जनशिकायतों का शीघ्र समाधान करें,...
- Advertisement -spot_img
spot_img

“मैं नालायक ही सही, पर संघर्ष की दास्तां अनसुनी क्यों?” — रायबरेली की आलोचना से आहत हुए मंत्री दिनेश प्रताप सिंह का भावुक पत्र

 रायबरेली की राजनीति में हलचल! उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए आलोचकों को दिया करारा जवाब। संघर्षों और उपलब्धियों को...

सड़क पर ही मिला सबक! सरेबाज़ार युवती ने उतारी चप्पल, पीट-पीटकर किया हलाकान

उन्नाव के शुक्लागंज बाजार में छेड़छाड़ से तंग आकर युवती ने युवक को चप्पलों और थप्पड़ों से पीटा। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर...