Sunday, July 20, 2025
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शराब, स्कूल और अस्पताल का त्रिकोण! प्रशासनिक अनदेखी में सिसकता बचपन…

चित्रकूट में शिशु अस्पताल और विद्यालय के पास संचालित शराब की दुकानों से बच्चों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। प्रशासनिक लापरवाही और ज़िम्मेदारों की खामोशी पर विस्तृत विश्लेषण पढ़िए इस रिपोर्ट में।

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट(उत्तर प्रदेश)। जब कोई नवजात शिशु जीवन में पहला साँस लेता है, तो उससे जुड़ी हर व्यवस्था एक सकारात्मक भविष्य की नींव रखने का वादा करती है। एक ऐसा वातावरण जहाँ वह बिना डर, बिना बुराई के बड़े होकर एक जिम्मेदार नागरिक बने। मगर जब प्रशासनिक लापरवाही ही उस नींव को सड़ा दे, तो सवाल सिर्फ व्यवस्था पर नहीं, पूरे समाज पर उठते हैं।

चित्रकूट जनपद में कुछ ऐसा ही भयावह परिदृश्य सामने आया है — जहां स्वास्थ्य, शिक्षा और शराब का त्रिकोण बन गया है।

🏥📚🍺 जहाँ होना चाहिए विकास, वहाँ खड़ी है शराब की दुकान

रिज़र्व पुलिस लाइंस खोह से कुछ ही दूरी पर स्थित रेहुंटिया गांव, जो मानिकपुर-कर्वी मार्ग पर आता है, एक असहज उदाहरण बन चुका है। यहां पर अंग्रेज़ी शराब और बीयर की दुकानें मातृत्व एवं शिशु अस्पताल और श्री जी इंटरनेशनल स्कूल के नजदीक संचालित हो रही हैं।

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सोचिए! एक ओर जहां जीवन का जन्म होता है — शिशु अस्पताल, वहीं कुछ कदम दूर नशे की गंध हवा में घुल रही है। और वहीं से होकर गुजरते हैं विद्यालय के मासूम बच्चे, जिनकी आंखों में डॉक्टर, इंजीनियर और अफसर बनने के सपने पलते हैं।

🚨 पुलिसकर्मियों की भी अनदेखी?

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इन शराब की दुकानों के नजदीक ही रिज़र्व पुलिस लाइंस स्थित है। यहां रह रहे पुलिसकर्मी अपने परिवारों और बच्चों के साथ रहते हैं। इन बच्चों का भी इन्हीं स्कूलों में रोज़ आना-जाना होता है, यानी शराब की दुकानों के प्रभाव क्षेत्र में जीना एक विवश दिनचर्या बन चुका है।

प्रशासन क्यों है खामोश?

यह सवाल बेहद गंभीर है —

  • क्या इन शराब की दुकानों को संचालन की अनुमति जिला प्रशासन से मिली थी?
  • क्या आबकारी विभाग ने विद्यालय और अस्पताल की दूरी की अनदेखी कर इनका आवंटन किया?
  • या फिर यह एक सुनियोजित लापरवाही है, जिसमें नियामक एजेंसियां जानबूझकर आंखें मूंदे बैठी हैं?
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सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार, किसी भी विद्यालय, अस्पताल, धार्मिक स्थल और पुलिस परिसर के नजदीक शराब की दुकान का संचालन प्रतिबंधित है। फिर यह कैसा अपवाद है?

🧠 बचपन पर संकट, सपनों पर ग्रहण

शराब की दुकानों की यह निकटता केवल नैतिक संकट नहीं है, बल्कि यह सामाजिक पतन का संकेत है।

इन दुकानों के आसपास का माहौल बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालता है। उन्हें न केवल नशे के दृश्य देखने पड़ते हैं, बल्कि कभी-कभी झगड़े, असामाजिक गतिविधियों और हिंसक घटनाओं का भी सामना करना पड़ता है।

आज ये बच्चे मजबूरी में चुप हैं, लेकिन अगर ये चुप्पी टूटी तो सवाल उन अफसरों से भी पूछा जाएगा जो इन दुकानों के आगे से रोज़ गुजरते हैं लेकिन कुछ नहीं करते।

🔍 अब क्या होगा?

अब देखना यह है कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर कितनी संवेदनशीलता दिखाता है।

क्या शराब की दुकानों को वहां से हटवाया जाएगा?

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या फिर बच्चों के भविष्य की कीमत पर मुनाफे और ठेकेदारी की राजनीति चलती रहेगी?

यह न सिर्फ बच्चों का मुद्दा है, बल्कि पूरे समाज के नैतिक और प्रशासनिक चरित्र का आईना है। जवाबदेही तय करनी ही होगी।

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