Monday, July 21, 2025
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बस्ती से देवरिया तक पंचायतें गायब – कौन लेगा जवाबदेही?

उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों की संख्या घटाकर 57,694 कर दी गई है। शहरी विस्तार, प्रशासनिक पुनर्गठन और न्यायालयी आदेशों के चलते यह बदलाव हुआ है, जिसका सीधा असर आगामी पंचायत चुनाव 2026 पर पड़ेगा।

अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट

देवरिया। उत्तर प्रदेश की राजनीति और स्थानीय प्रशासन में बड़ा बदलाव सामने आया है। राज्य सरकार ने ग्राम पंचायतों के ढांचे में व्यापक पुनर्गठन करते हुए उनकी संख्या में कटौती की है।

वर्ष 2021 में हुए पंचायत चुनावों के समय प्रदेश में कुल 58,195 ग्राम पंचायतें थीं, परंतु अब यह संख्या घटकर 57,694 रह गई है। यानी कुल 501 पंचायतें समाप्त कर दी गई हैं। इसके पीछे प्रशासनिक दक्षता, शहरी सीमा विस्तार और कानूनी आवश्यकताओं को मुख्य आधार बताया गया है।

📉 किन जिलों में सबसे ज्यादा पंचायतें हुईं समाप्त?

आइए सबसे पहले नज़र डालते हैं उन जिलों पर जहां ग्राम पंचायतों में सर्वाधिक कमी दर्ज की गई है:

देवरिया – 64 पंचायतें समाप्त

आजमगढ़ – 49 पंचायतें समाप्त

प्रतापगढ़ – 46 पंचायतें समाप्त

इन जिलों में नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्रों का दायरा बढ़ने से कई ग्रामीण क्षेत्र शहरी प्रशासन के अंतर्गत आ गए हैं। इसके चलते वहां की ग्राम पंचायतों का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया।

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📍 अन्य प्रभावित जिले और मामूली बढ़ोत्तरी वाले क्षेत्र

इसके अतिरिक्त कई अन्य जिलों में भी पंचायतों की संख्या में कटौती हुई है:

अलीगढ़ – 16 पंचायतें समाप्त

अम्बेडकरनगर – 3 पंचायतें

अमरोहा – 21 पंचायतें

अयोध्या – 22 पंचायतें

इसके विपरीत बस्ती जिले में कोर्ट के आदेश से दो नई ग्राम पंचायतों का गठन किया गया, जिससे वहां आंशिक वृद्धि दर्ज की गई।

🧭 पुनर्गठन के पीछे कारण क्या हैं?

राज्य सरकार ने यह बदलाव कुछ ठोस प्रशासनिक और सामाजिक कारणों के आधार पर किया है। इनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

1. शहरी सीमा का विस्तार

तेजी से बढ़ते नगरीकरण के कारण कई गांव अब नगर पंचायत या पालिका क्षेत्र का हिस्सा बन गए हैं, जिससे वहां की पंचायतें स्वतः निरस्त हो गईं।

2. जनसंख्या और भौगोलिक तर्क

जनसंख्या के असंतुलन या भूगोलिक समीकरण के चलते कई पंचायतों को एकीकृत किया गया या विभाजित किया गया।

3. प्रशासनिक सुविधा

जहां दो या अधिक पंचायतें कम जनसंख्या के साथ थीं, उन्हें मिलाकर एक प्रभावशाली इकाई बनाई गई है।

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4. न्यायालय के निर्देश

बस्ती जैसे जिलों में स्थानीय विवादों के चलते न्यायालय द्वारा नई पंचायतों का गठन आदेशित किया गया।

🗳️ राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

इस पुनर्गठन का सीधा प्रभाव आगामी पंचायत चुनाव 2026 पर देखने को मिलेगा:

प्रत्याशियों की संख्या घटेगी, जिससे चुनावी मुकाबला अधिक तीखा होगा।

आरक्षण व्यवस्था को नए सिरे से लागू करना पड़ेगा।

नए सीमांकन के कारण कुछ क्षेत्रों में सामाजिक और जातीय संतुलन बिगड़ने की आशंका है।

प्रतापगढ़ के एक ग्रामीण रामसेवक यादव कहते हैं –

“हमारे गांव की पंचायत अब पास के बड़े गांव में मिला दी गई है, जहाँ हमें कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।”

वहीं, आजमगढ़ की महिला ग्राम प्रधान सुनीता देवी ने इसे सकारात्मक नज़रिए से देखा –

“अगर हमारा क्षेत्र शहरी हो गया है, तो हमें बेहतर सुविधाएं और योजनाएं मिलेंगी।”

🏛️ राज्य सरकार और पंचायती राज विभाग का पक्ष

पंचायती राज विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:

“यह निर्णय अचानक नहीं लिया गया है। हर पंचायत की जनसंख्या, संसाधन और विकास जरूरतों की समीक्षा के बाद बदलाव किया गया है।”

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उन्होंने बताया कि सभी पंचायतों को अधिसूचित किया जा चुका है और पंचायत पोर्टल पर डेटा भी अपडेट कर दिया गया है।

🧾 आगामी पंचायत चुनावों पर प्रशासनिक प्रभाव

राज्य निर्वाचन आयोग को अब नए सिरे से पुनः आरक्षण प्रक्रिया करनी होगी।

मतदाता सूची का पुनरीक्षण भी आवश्यक होगा।

नई पंचायतों की भौगोलिक सीमाओं के अनुसार मतदान केंद्र तय करने होंगे।

यह तैयारी समय से शुरू करना आवश्यक है ताकि चुनाव निष्पक्ष और भ्रमरहित रूप से संपन्न हो सकें।

🔍 क्या यह पुनर्गठन लाभकारी है?

यह सवाल अब आम नागरिक, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के बीच बहस का विषय बन गया है।

जहां एक ओर सरकार इसे विकास, सुशासन और प्रशासनिक दक्षता की दिशा में बड़ा कदम मानती है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय प्रतिनिधित्व और जनभावनाओं के नुकसान की भी चर्चा हो रही है।

आगामी चुनावों में यह देखने वाली बात होगी कि यह पुनर्गठन लोकतंत्र को और सशक्त बनाता है या स्थानीय आवाजों को दबाता है।

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