Sunday, July 20, 2025
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महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 132वीं जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन, छात्रों ने सीखा– ‘भागो नहीं, दुनिया को बदलो’

आजमगढ़ स्थित महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय में महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 132वीं जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें उनके विचारों और जीवन दर्शन पर विस्तृत चर्चा की गई।

आजमगढ़, महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ में बुधवार को महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 132वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक विचारोत्तेजक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के न्यू सेमिनार हॉल में सुबह 10 बजे से प्रारंभ हुआ, जिसमें अनेक विद्वानों और छात्रों ने भाग लिया।

सबसे पहले, विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री विशेश्वर प्रसाद और अन्य अतिथियों ने सरस्वती माता की प्रतिमा और महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात विश्वविद्यालय की छात्राओं ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलसचिव श्री विशेश्वर प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा,

“हमें राहुल सांकृत्यायन से यह सीखना चाहिए कि जब लक्ष्य तय कर लिया जाए, तो थकना मना है – मंज़िल मिलने तक चैन नहीं लेना है।”

इसके बाद, प्रमुख अतिथि एवं ‘जनहित इंडिया’ के संपादक मदन मोहन पाण्डेय, जो स्वयं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के पौत्र हैं, ने सांकृत्यायन जी के जीवन यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे केदार पांडेय से राहुल सांकृत्यायन बनने तक का उनका सफर संघर्षपूर्ण और प्रेरणादायक रहा।

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मुख्य वक्ता प्रो. गीता सिंह, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज आजमगढ़ की हिंदी विभागाध्यक्षा, ने ‘भागो नहीं, दुनिया को बदलो’ विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा,

“राहुल जी की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति और समदर्शी दृष्टिकोण ने उन्हें एक चिंतक और परिवर्तनकारी लेखक के रूप में स्थापित किया।”

वहीं, प्रो. हसीन खान, श्री गांधी पी.जी. कॉलेज मालटारी से, ने ‘राहुल सांकृत्यायन: व्यक्ति और विचार’ विषय पर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि,

“वे एक ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने विचार और रचना, दोनों में सामंजस्य बनाए रखा। उनके लिए लेखन सिर्फ रचनात्मकता नहीं, बल्कि वैचारिक क्रांति का माध्यम था।”

कार्यक्रम का संचालन डॉ. परमानन्द पाण्डेय (अतिथि प्रवक्ता, मनोविज्ञान विभाग) द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया। धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी श्री जे.एन. झा ने किया।

अंत में, यह भी उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के लगभग 150 छात्र-छात्राएं और सभी अतिथि प्रवक्तागण उपस्थित रहे, जिनकी सहभागिता ने इस कार्यक्रम को सार्थकता प्रदान की।

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➡️जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

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