चित्रकूट के मानिकपुर स्थित राजकीय बालिका इंटर कॉलेज का निर्माण कार्य 15 वर्षों से अधूरा पड़ा है। न सपा सरकार ने इसे पूरा किया, न भाजपा सरकार ने ध्यान दिया। पढ़ें—यह विद्यालय कैसे शासन की नीतियों की पोल खोल रहा है।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट(मानिकपुर)। शिक्षा को सर्वसुलभ और समान अधिकार का मुद्दा तब शर्मसार हो जाता है जब किसी विद्यालय का निर्माण कार्य डेढ़ दशक से अधूरा पड़ा हो। बुन्देलखण्ड के पिछड़े जिले चित्रकूट के मानिकपुर कस्बे में राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की इमारत इसकी जीवंत मिसाल बन चुकी है।
वर्ष 2008 में बसपा सरकार ने इस विद्यालय की नींव रखी थी, परंतु अफ़सोसजनक यह है कि 15 साल बीत जाने के बाद भी यह विद्यालय आज तक अपने पूरे स्वरूप में नहीं आ सका है। इसका सीधा असर स्थानीय कोल आदिवासी और अनुसूचित जाति की बेटियों की शिक्षा पर पड़ा है, जो आज भी एक छोटे से कमरे में ठुंसी पड़ी हैं।
शुरुआत उत्साह से, अंत उपेक्षा में
दरअसल, वर्ष 2010 में 1.71 करोड़ रुपये के बजट के साथ राजकीय बालिका इंटर कॉलेज का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। कार्यदायी संस्था सीएनडीएस को इसका ज़िम्मा सौंपा गया था। मगर वर्ष 2012 में सरकार बदलते ही सपा शासन काल में इस कार्य के लिए बजट देना बंद कर दिया गया और 2014 तक काम पूरी तरह ठप हो गया।
प्रशासनिक सुस्ती और लापरवाही
जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा निर्माण कार्य बंद होने की जानकारी तत्कालीन जिलाधिकारी को दी गई, जिसके बाद 31 मार्च 2020 को तीन सदस्यीय जांच टीम का गठन किया गया। टीम में जिला विकास अधिकारी, सिंचाई विभाग और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी शामिल थे। जांच में निर्माण कार्य में भारी अनियमितताएं पाई गईं, जिसके चलते 17 जून को तत्कालीन जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय ने एफआईआर के निर्देश दिए।
सत्ता बदलती रही, पर हालत जस की तस
न सपा सरकार ने इसे संजीदगी से लिया और न ही भाजपा सरकार ने कोई ठोस कदम उठाया। यह विडंबना ही है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली भाजपा सरकार में भी यह विद्यालय उपेक्षा का शिकार बना रहा।
मानिकपुर विधानसभा से पूर्व में आर के सिंह पटेल और आनंद शुक्ला विधायक रहे और अब अपना दल (एस) के अविनाश चंद्र द्विवेदी यहां से विधायक हैं। लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस गंभीर मुद्दे पर कार्य नहीं किया।
कितनी बेटी वंचित? कौन देगा जवाब?
आज भी इस अधूरी इमारत के कारण कई बालिकाओं का एडमिशन रोक दिया गया है, और जो पढ़ रही हैं वे असुविधाजनक स्थिति में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। शिक्षा की मूलभूत आवश्यकता जैसे भवन, शौचालय, पीने का पानी, सुरक्षा—सब कुछ अधूरा है।
क्या सिर्फ नारे ही रह जाएंगे?
सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारों को मंचों से गूंजाती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे एकदम विपरीत है। सवाल यह है कि क्या इन नारों का अर्थ केवल चुनावी भाषणों तक सीमित रहेगा, या फिर इस बालिका विद्यालय के अधूरे निर्माण को पूर्ण कर सत्ताधारी दल वास्तव में लड़कियों को शिक्षित करने की दिशा में ठोस पहल करेगा?
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क्या सरकार को राजकीय बालिका इंटर कॉलेज, मानिकपुर का निर्माण कार्य शीघ्र पूरा कराना चाहिए?