Sunday, July 20, 2025
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कीचड़, नाले और जानवरों के बीच पढ़ाई! यह है पाठा क्षेत्र के स्कूलों की हकीकत

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में स्कूली बच्चों को बदहाल रास्तों, खराब शौचालयों, पेयजल संकट और शिक्षकों की कमी जैसी समस्याओं के बीच शिक्षा प्राप्त करनी पड़ रही है। समाजसेवी मुकेश कुमार ने हालात पर चिंता व्यक्त की है।

स्कूल जाने का रास्ता बना चुनौती

चित्रकूट जिले के दूरस्थ पाठा क्षेत्र में शिक्षा पाने की राह बच्चों के लिए आसान नहीं है। समाजसेवी मुकेश कुमार के अनुसार, यहां के अधिकतर बच्चे कीचड़ और गंदगी से भरे रास्तों से होकर स्कूल जाते हैं। कुछ जगहों पर तो खुले नाले बच्चों के लिए जानलेवा खतरा बन चुके हैं।

रास्ते इतने बदहाल हैं कि, 

  • बच्चों को जूते उतारकर चलना पड़ता है
  • बारिश के मौसम में रास्ते बिल्कुल बंद हो जाते हैं
  • कई स्थानों पर गड्ढों में पानी भर जाता है, जिससे फिसलने का डर बना रहता है
  • स्कूल भवन जर्जर, शौचालय और पानी की भारी कमी

इन इलाकों में बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह से चरमरा गई हैं। समाजसेवी ने बताया:

  • अधिकांश स्कूलों में शौचालय हैं ही नहीं, और जो हैं वे गंदगी से भरे हैं
  • कुछ स्कूलों में पेयजल उपलब्ध नहीं, हैंडपंप लंबे समय से खराब पड़े हैं
  • बाउंड्री वॉल न होने से स्कूल परिसर में जानवर घूमते रहते हैं
  • कई स्कूलों की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं, जो बच्चों की जान के लिए खतरा बन चुकी हैं
  • एक ही कक्षा में कई कक्षाएं, मिड-डे मील में भी अनियमितता
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शिक्षा की गुणवत्ता भी यहां बेहद प्रभावित हो रही है:

  • कई स्कूलों में सभी कक्षा के बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाया जा रहा है
  • शिक्षकों की संख्या बेहद कम है, जिससे व्यक्तिगत ध्यान नहीं मिल पाता
  • मिड-डे मील योजना में भी भारी लापरवाही देखी जा रही है — कई बार बच्चों को समय पर खाना नहीं मिलता, या भोजन की गुणवत्ता बेहद खराब होती है

समाजसेवी की प्रशासन से अपील

“पाठा क्षेत्र के स्कूलों में तुरंत ध्यान दिया जाए। सड़क, पानी, शौचालय, और शिक्षा से जुड़ी हर सुविधा बच्चों का अधिकार है, और इसमें कोई समझौता नहीं होना चाहिए।”

चित्रकूट के पाठा क्षेत्र की यह स्थिति दर्शाती है कि सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन आज भी एक चुनौती है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो इस क्षेत्र के बच्चों का भविष्य अधर में रह जाएगा।

🔁 यह लेख शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बच्चों की यह वास्तविकता पहुँच सके।

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